पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/९६

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अहिंसा wear- ऐसा नहीं हुआ। मैने कोई असंभव चित्र नहीं खोया है। मेरे बलाये हुए थ्यक्तिगत अहिंसाके उदाहरणोंसे इतिहासके पन्ने-के-पन्ने भरे पड़े हैं। यह कहने या भानने के लिए कोई आधार नहीं है कि स्त्री-पुरुषों के समूह पर्याप्त शिक्षाके बाद समष्टि या राष्ट्र के रूपमें जहितात्मक आचरण नहीं कर सकते। निश्चय ही मानव-समुदायके अबतक के अनुभवका सार यह है कि मनुष्य किसी न किसी तरह जीवित रहना चाहता है। इस तथ्यसे में यह नतीजा निकालता हूँ कि प्रेम ही वह कानून है जिससे कि मानव-समुदाय शासित होता है। हिंसा अर्थात् घृणाका साम्राज्य हुआ होता तो हम कभीके लोप हो गये होते। और फिर भी दुख की बात है कि सभ्य कहे जानेवाले पुरुष और राष्ट्र अपने आवरल इस प्रकारके रखते है मानों समाणका माधार हिंसा हो । प्रेम ही जीवनका श्रेष्ठ और एकमात्र कानून है, यह सिद्ध करने के लिये प्रयोग करने में मुझे अकथनीय आनंब चाता है। इसके विपरीत दिये जानेवाले अगणित उवा- हरण मेरे इस विश्वासको नहीं हिला सकते। भारतको मिश्रित हिंसातकसे इसको समर्थन मिला है। लेकिन अगर किसी अविश्वासोको विश्वास कराने के लिए इतना काफी नहीं है, तो एक सुहृद समालोचकको इसपर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने के अर्थ प्रेरित करने के लिए फाफी है। हरिजन सेवक २० अप्रैल, १९४० 9 अहिंसा फिर किस कामकी? एक हिन्दुस्तानी मित्रके पत्रका सार नीचे दे रहा है- "दिल दुखता है नार्वेकी दर्दभरी कहानी सुनकर । वे लोग हिम्मतसे लड़े तो सही, लेकिन अधिक बलवान दुश्मन के मुकाबले में हार बैठे। इससे हिंसाकी निरर्थकता साबित होती है। लेकिन क्या हम दुनियाकी समस्याको हल करने के लिए कुछ अहिंसा सिखा रहे हैं। जिनको परे- भान करके क्या हम जर्मनीको उत्साहित नहीं कर रहे हैं ? ना और डेनमार्क हमारे रुखको कैसे ठीक समझ सकते है ? उनके लिए हमारी हिंसा किस कामकी । चीन और स्पेनको हमने जी इमदार दी, उसके बारेमें भी वह गलतफहमी करराफते हैं। आपने जो फर्क किया है वह केवल इसलिए कि एक साम्राज्यवादी तापतको आप मदद नहीं देना चाहते, हालांकि यह एक अच्छे कामके लिए ला रही है । पिछली लड़ाई में आपने मर्ती करवाया, लेकिन आज आपका स्याल निलकुल दूसरा है । फिर भी आप कहेंगे कि यह सब ठीक है । यह कसे ? मैं तो नहीं समझता हूँ।" डेनमार्क और नार्वेके अत्यंत सुसंस्कृत और सिर्वोष लोगोंकी किस्मसपर अफसोस करने पालोंमें लेखक अकेले ही नहीं है। यह लड़ाई हिंसाको निरर्थकता दिखता ही है । कई किया