पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/९५

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गांधीजी नहीं किया है। सलिए वे असामयिक अर्थात् समयसे पहले भी है। परीक्षण अभी शुरू ही है। यह अभी आगे बढ़ी हुई अवस्था नहीं है। जिस तरहका यह परीक्षण है उसमें परीक्षणकर्ताका एक बारगी एक कदमके संबंध, निश्चय हो जाना जरूरी है। सुदूरवर्ती दृश्य थेपला उसका काम नहीं है। इसलिए मेरे उत्तर सर्वथा काल्पनिक ही हो सकते हैं। गंशा कि मैं पहिले कह चुका हूँ, सच तो यह है कि स्वतंत्रता-प्राप्तिके अपने इस संग्राम में भी हम विशुद्ध अहिंसासे काम ले रहे हैं। पहिले प्रश्न के उत्तरम, अभी जहाँसक में देख पाता हूँ, मुझे भग है कि सत्याग्रहको सिद्धान्तके रूपमै राज्यको नीति मान लिये जानकी संभावना बहुत कम है। और भारत जब स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद अहिंसाको अपनी गोति नहीं मानता है, तब वूसरा प्रश्न निरर्थक हो जाता है। लेकिन अहिंसाको क्षमताके सम्बन्ध में अपना व्यक्तिगत विचार प्रगट कर मेरा विश्वास है कि अगर जनताका बहुसंख्यक भाग अहिसात्मक हो, तो राज्यका शासन कार्य अहिंसाके आधारपर चलाया जा सकता है। जहांतक मैं जानता हूँ, भारत ही एक ऐसा देश है, जिसके ऐसा राज्य हो सफनेको संभावना है। इसी विश्वासके आधारपर मैं अपना प्रयोग चला रहा हूँ। इसलिए अगर यह मान लिया जाय कि भारत पिन हिंसा के जरिये स्वतंत्रता प्राप्त कर लेता है, तो उन्हीं सापनोंसे बह उसकी रक्षा भी कर सकता है। एक अहिंसात्मक व्यक्ति या समुवाय बाहरके माक्रगणोंकी कल्पना या लयारी नहीं पारता। इसके विपरीत ऐसा व्यक्ति या समुदाय यह दृढ़ विश्वास रखता है कि कोई भी उसफो शांति विघ्न नहीं डालेगा। अगर कोई अकल्पित बात हुई तो अहिंसा के लिए दो मार्ग खुले हैं। एक, आक्रमणकारीका अधिकार हो जाने चेना, किन्तु उसके साथ सहयोग न करना। इस प्रकार फर्ज कीजिए कि नौरोफा आधुनिक प्रतिरूप भारतपर आक्रमण करे, तो राज्य के प्रतिनिधि उसे अन्दर आ जाने खेंगे, लेकिन उसले कह देंगे कि जनतासे उसे किसी प्रकारकी सहायता नहीं मिलेगी। यह आत्मसमर्पण के बजाय मर आना पसंद करेंगी। दूसरा तरीका यह है कि जिन लोगों ने अहिंसा- को पक्षसिसे शिक्षा पायी है, उनके द्वारा हिंसात्मक मुकाबला किया जाता है। वे निहत्थे ही आगे आकर आक्रमणकारीकी सोपोंकी लाश-सामग्री बनेंगे। दोनों ही बातोंको तहमें यह विश्वास निहित है कि नीरोतकामें भी एक हक्य होता है। स्त्री-पुरुषों के निरंतर अण्ज-को- सुण्डमें भाक्रमणकारीको इच्छापर आत्मसमर्पण करने के बजाय बिना किसी मुकाबलेके केवल भरते जानका अरिपन दृश्य अन्तमें जाकमणकारी और उसकी सेनाके हृदयको पिष- लाये बिना न रहेगा। व्यावहारिक दृष्टिसे बलपूर्वक मुकाबला करनेको अपेक्षा संभवतः इसमें जनहानि अधिक नहीं होगी। और शस्त्रालयों तथा किलेबंदीपर किसी प्रकारका खर्च न होगा। लोगोंको मिली हुई अहिंसाफी शिक्षा उनकी नलिक उच्चताको इतना बड़ा वेगी, जिसको कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस तरहके स्त्री-पुरुष व्यक्तिगतरूपसे सशस्त्र युद्ध में दिखायी जानेवाली वीरताको अपेक्षा कहीं अधिक ऊँचे बजेको जीरता दिखा सकते है। हर हालसमें बहादुरी मरनेमें है, मारनेमें नहीं। औसम अहिसात्मक प्रतिरोधी पराजय मैसी कोई वस्तु है ही नहीं। मेरी कल्पनाका यह कोई जवाबमें जवाब नहीं है कि पहले कभी १