पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/९९

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निर्णय कौन करे ? ( नीचे लिखी मुलाकात अमेरिकाके 'न्यूयार्क टाइम्स' पत्रके प्रतिनिधिसे गांधीजीकी हुई थी--अमृतकौर ) प्रश्न-निटेनकी तरफगे,मैने सुना है ,यह कहा गया है कि, "इस युद्ध के अन्तमें दुनियाकी पुनः रचना किस प्रकार की होगी, यह हम कह नहीं सकते। भारत के प्रश्नको दुनिया के प्रश्नोंसे अलग नहीं किया जा सकता । यदि जर्मनीकी जीत होती है लो औपनिवेशिक दर्जा, पूर्ण स्वतंत्रता आदि शब्दोंके अर्थ तब शायद बहुत भिन्न हों, अथवा कुछ भी न रहें । तो फिर भारत बेस्ट- मिनिस्टर-स्टेच्यूटके औपनिवेशिक दर्जेको आज स्वीकार कर ले और शान्ति-परिषदके समय अवसरसे लाभ उठाये, तो इसमें क्या धुराई है ? वर्तमान परिस्थितियोंमें औपनिवेशिक दर्जा ही ज्यादा-से-ज्यादा भारतको हम दे सकते हैं।" आपने खुद यह बाहा है कि, "ब्रिटेन और फ्रांस अगर हार जाते हैं, तो उस स्थितिमें मारतकी आजादीका नया मूल्य ?" क्या इन मुद्दों पर आप अधिक प्रकाश डालेंगे? उत्तर-भारतका कानूनी दर्जा-फिर वह औपनिवेशिक दर्जा हो या जो भी हो---- लाईकी समाप्तिके बाद ही आ सकता है। हालमें निर्णय करमेकर प्रश्न यह नहीं है कि फिल- हाल भारत औपनिवेशिक वर्ग से संतोष मान ले। इस वक्त तो इतना ही प्रवन है कि विदिशा नीति अरखिर क्या है ? क्या प्रेट ब्रिटेन अब भी यह मामता है कि भारतका दर्जा निश्चित करनेका केवल उसका ही एक मात्र अधिकार है, या यह निर्णय करनेका एकमात्र अधिकार भारतका है ? यह प्रश्न मगर म उठाया गया होता, तो आज जो चर्चा उठी हैं यह न उठती। यदि वह उठी है और उसे उठानेका भारतको हक था-तो इस स्थितिम मेरा जो कुछ वजन है उसे काँग्रेसको लरफ डालना मेरा फर्भ था। यह होते हुए, वायसरायसे अपनी पहली मुलाकात के बाद मैने खुद अपनेसे जो प्रश्न पूछा था उसे आज भी मैं पूछ सकता हूँ कि 'झिटेन और फ्रांस अगर हार जाते हैं, तो भारतको आजाधीका क्या मूल्य ?" में महान् राष्ट्र हार जाये तो यूरोप और दुनियाका इतिहास फैसा लिखा जायगा, यह कोई पहलेसे नहीं बता सकता। अतः मेरा प्रश्न स्वतंत्र दृष्टिसे भी महत्वका है। इस वर्धाका प्रस्तुत मुद्दा तो यह है कि भारतके संबन्ध न्यायका आचरण करके ब्रिटेन मित्रराष्ट्रोंको जीतका यकीन करा सकता है, क्योंकि फिर सारे संसारका सुशिक्षित लोकमत इस बातका साक्ष्य वेगा कि उनका पक्ष न्यायसंगत है। प्रश्न-फिलहाल भारतको अलग रखकर १५गोरी प्रजासत्ताओंका एक संघ-संभ अनाने- संबन्धी मि० स्ट्रेटकी योजनाके बारेमें , अश्वा यूरोपके राष्ट्रों तथा निदिर्श प्रासमूह (इसमें भी भारतको तो बाहर ही रखा गया है) का एक संवतंत्र बनानेकी दरम्यास्तके बारे में आपने कुछ राम ३२०