पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१००

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अहिंसा 1 स्थिर की है ? रंगीन जातियोका गोरों द्वारा जो शोषण हो रहा है उसे रोकने के लिए इतने विशाल संघ-तंत्र में दाखिल होनेकी क्या आप भारतको सलाह देगे?" उत्तर-दुनियाके तमाम राष्ट्रोंका एक विश्वव्यापी संघ-तंत्र बनता हो तो मैं उसका अवश्य स्वागत करूंगा। सिर्फ पश्चिमके राष्ट्रोंफा संघ-संत्र तो एक अपवित्र संगठन होगा और मानव-जातिके लिए यह भय सिद्ध होगा । मेरी रायके अनुसार तो भारतको अलग रखकर किसी भी संघ-तंत्रकी कल्पना करना अब असंभव है। भारत इस स्थितिसे गुजर चुका है कि उसकी उपेक्षा करके दुनियाकी किसी भी व्यवस्थाका विचार किया जा सके। प्रश्न----आपने अपने जीवनकालमें मुद्ध द्वारा इतना बड़ा संहार और सर्वनाश देखा है जितना बड़ा दुनियाके इतिहासमें पहले कभी देखने में नहीं आया । और इतने पर भी आप अब भी अहिंसाको ही नयी संस्कृतिका आधार रूप मानते है ? क्या आपको यह विश्वास है कि आपके देशवासी इसे बिना किसी पर्दगीकै स्वीकार करते हैं ? आप बारबार इस बातपर जोर देते हैं कि सविनय-भंग शुरू करनेसे पहले आपकी शोका पूरा-पूरा पालन होना चाहिए । क्या अब भी आप अपनी उन शर्तोसे चिपटे हुए हैं ? उत्सर-आपकी यह बात सही है कि दुनियामें आज ऐसा भीषण संहार जारी है जैसा कभी सुनने में नहीं पाया। मगर अहिंसा विषयक मेरी बबाकी परीक्षाको भी यही सच्ची घड़ी है। मेरे आलोचकोंको भले ही विचित्र मालूम के, फिर भी मै यह कहूंगा कि अहिंसा विषयक मेरी श्रद्धा-ज्योति अखंड रीतिसे आज भी वैसी ही प्रज्वलित है। अपने जीवन- कालमें हिंसाको जितने अंशों में मैं देखना चाहता हूँ उतने अंशोंमें उसका बर्वान कवाचित नहो। पर यह जुदा प्रश्न है। इससे मेरी भडा विचलित नहीं हो सकती। और इसीलिए सविनय-भंग शुरू करनेसे पहिले अपनी बालोंका पूरा पूरा पालन करानेके विषय में जरा भी मुकानेको तैयार नहीं। क्योंकि सारे संसारका उपहास-पान बननेका जोखिम उठाकर भी में अपनी इस मान्यताको छोड़ने वाला नहीं कि भारतके बारेमें तो अहिंसा और चखेंक बीच निश्चय ही अटूट संबध है। जिस तरह ऐसे चिन्ह या लक्षण है कि जिनके द्वारा आप मग्न आँखोंसे हिंसाको पहचान सकते हैं, उसी तरह बर्खा मेरे लिए हिंसाका एक अचूक प्रतीक है। चाहे जो हो, अपनी बवापर अटल रहकर उसकी सिद्धि के लिए आप जानेमें मुझे कोई भी प्रीण नहीं रोक सकती। भारतके सामने आण जो अनेक पेचीदी समस्याएं उपस्थित हैं, उन्हें हल करनेके लिए दूसरा कोई तरीका मेरे पास नहीं है । प्रश्न--भारत अपनी इच्छानुसार अपना राज्य तंत्र चलाये, आप यह घोषणा करना चाहते हैं। आप यह भी कहते हैं कि "मह हो सकता है कि श्रेष्ठ पंक्तिके अंग्रेज और भारतवासी इकट्ठे होकर बैठ जायें और तबतक उनका नाम न में जबतक कि ऐसा फामूलान बनालें जो कि दोनोंको स्वीकार हो । भग्नेश कहते है कि "रक्षा कार्यमें, व्यापारिक स्वार्थों में और वेश्ची राज्यों में हमारे पक्के हित संबन्ध रहे हैं। जैसा कि आप कहते है पंक्तिक अंग्रेजों और श्रेष्ठ पवितके भार लीयौंको इस संबन्ध मैत्रीपूर्ण वेन लेनकी भावनासे (१९२२के एंग्लो-ईजिप्ट संधिमें इस भाषाका प्रयोग किया गया था) पाम करने देने के लिए क्या आप राजी है ? १२