किंतु ईश्वरीसिंह को राज्याधिकार प्राप्त हो गया है, तो उसके मन में ईश्वरीसिंह की ओर से डाह उत्पन्न हो गई और वह भाई माधवसिंह को किसी प्रकार राज्याधिकार दिलाने के लिये उद्योग करने लगा। अंत को जगतसिंह ने यह संपूर्ण वृत्तांत मल्हारराव होलकर को कह सुनाया और यह वचन दिया कि यदि जयपुर का राज्य आपकी सहायता से भाई माधवसिंह को प्राप्त हो जायेगा, तो आप को चौंसठ लाख रुपया बतौर इनाम दे दूंगा। इस प्रस्ताव को मल्हारराव होलकर ने महर्ष मंजूर कर लिया।
ईश्वरीसिंह को जब यह सब हाल विदित हुआ तब उसने मल्हारराव होलकर के भय से, जो वास्तव में बड़े शूर वीर थे और जिनके नाम तथा गुणों से उस समय सब लोग परिचित थे, और अपनी मानहानि के हर से उसने विष खा लिया और अपने प्राण गँवा दिए। ईश्वरीसिह के स्वर्गवासी होने के पश्चात् माधवसिंह सहज में ही जयपुर का अधिकारी बन बैठा और मल्हारराव को वचन दिया हुआ द्रव्य सहज ही में प्राप्त हो गया। जब माधवसिंह पूर्ण रूप से जयपुर का अधिकारी बन बैठा, तब उसने बिना किसी से कहे सुने रामपुरा गाँव जो कि वास्तव में जगतसिंह का था, मल्हारराव होलकर को दे डाला। रामपुरा (राजस्थान) गाँव माधवसिंह को केवल हाथ खर्च के लिये संग्रामसिंह ने दिया था, न कि उसको दे डालने को। यद्दपि जगतसिंह के इसको होलकर को दे डालने में माधवसिंह अप्रसन्न हुआ, परंतु भाई के किए हुए काम में हस्तक्षेप करना उसने उचित नहीं समझा।