पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( ९५ )


सेनापति लोग परामर्श देंगे। बाई को केवल दादा साहब के धन के तृषित मन को ही इस युक्ति से लज्जित करना था, और ऐसा ही हुआ भी। जब दादा साहब की सेना ने रणक्षेत्र में स्त्रियों के अतिरिक्त किसी पुरुष को उपस्थित न देखा तब संपूर्ण सेना ने दादा साहब से एक स्वर से कह दिया कि हम लोग स्त्रियों पर किसी प्रकार, रणक्षेत्र में अथवा दूसरे स्थान पर कभी शस्त्र नहीं चलावेंगे; और अपने अपने शस्त्र एक ओर रख दिए। तब दादा साहब ने स्वयं बाई से आकर पूछा कि आपकी सेना कहाँ है? बाई ने बड़े नम्र भाव से उत्तर दिया कि मेरे पूर्वज पेशवाओं के सेवक थे। उन्हीं के अन्न से इस देह की रक्षा हुई है। इसलिये में अनीति का अवलंब करके अपने मालिक पर कभी शस्त्र चलाने हेतु सेना को रणक्षेत्र में उपस्थित नहीं कर सकती। हाँ, धर्म नहीं त्याग सकती और न संकल्पित धन यो सहज में ही लूटने दूँगी। आपके सम्मुख में उपस्थित हूँ। आप भले ही मुझे मार संपूर्ण राज्य के अधिकारी हो जायें। परंतु प्राण रहते हुए तो एक पैसा भी न लेने दूँगी। बाई के इस उत्तर को सुन दादा साहब लज्जित हो वापस चले गए।

जयपुर के राजा के यहाँ होलकर के कुछ रुपए कर के अटक रहे थे। तुकोजी ने इन रुपयों की उगाही के लिये बडी लिखा-पढ़ी की और उसी समय सेंधिया का जिउआ दादा भी अपने रुपयों के वसूल करने का यत्न कर रहा था। जयपुर के मंत्री दौलतराम ने दोनों को लिखा कि हम सेंधिया और होलकर दोनों के ऋणी हैं, इसलिये जो अधिक बल या