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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१०६

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ईस्वी सन् १७८८ में राजपूतों ने मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा पर बहने वाली रिरकिया नामक नदी के तट पर बसे हुए चहुर नामक स्थान में अपनी विजयी सेना महाराष्ट्रों के साथ युद्ध के हितार्थ भेजने का प्रबंध किया। इसके अतिरिक्त मेवाड़ के और स्थानों पर भी अपने दल को स्थापित करने का उन्होंने यत्न किया, क्योंकि सेना में अन्न की कमी हो जाने से महाराष्ट्रीय सेना ने राजपूताने को एकदम छोड़ने का विचार कर लिया था। परंतु राजपूतों को यह असल भेद न मालूम होने से उन्होंने एकदम यह विश्वास कर लिया कि इनके पैर उखड़ गए, ये युद्ध में हमारा सामना नहीं कर सकते। और राजपूत वीरों ने एकाएक महाराष्ट्र के जनपद परगनों पर भी अपना अधिकार स्थापित करना निश्चित कर लिया। परंतु महारानी अहिल्याबाई के प्रचंड बाहुबल ने राजपूतों के विचारो को तुरंत विफल कर दिया।

जिस समय अहिल्याबाई को यह हाल मालूम हुआ कि राजपूत वीर नीम बहड़ा जनपद हस्तगत करना चाहते हैं तब बाई ने अपनी सेना मंदसौर स्थान पर भेज राजपूतों की गति को रोक दिया। इसी स्थान पर दोनों दलों का युद्ध हुआ और अंत को अहिल्याबाई की सेना ने विजय प्राप्त की।

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