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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/११०

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आज ही के दिन खंडेराव होलकर की (पक्ष) तिथि थी उसको बड़े समारोह के साथ दान धर्म करके समाप्त किया ।"

(२) "आज प्रातःकाल से बाई को दस्त का उपद्रव हुआ है । दिन में तीस चालीस बार शौच को जाती हैं परंतु अमावास्या होने के कारण औषध नहीं लिया।"

(३) "मातेश्वरी आज प्रात:काल खड़ाऊँ पहन कर गौ के दर्शनों को जाती थीं कि अचानक उनका पैर खड़ाऊँ से फिसल गया, इस कारण पाँव में कुछ चोट आने से दुःखित रही ।

श्रावण के कई उत्सव महेश्वर दरबार के पत्रों में दिए हुए हैं, उनमें से केवल दो ही हम अपने पाठकों के हितार्थ इस स्थान पर उद्धत करते हैं । इनको पढ़ने से यह बात ध्यान में आ जायेगी के बाई को दान-धर्म करने का एक विलक्षण प्रेम था ।

(४) यहाँ आजकल श्रावण मास का उत्सव है । प्रति दिन अढ़ाई तीन सहस्र ब्राह्मणभोजन होता है । २००, ३०० ब्राह्मण लिंगार्चन के अनुष्ठान में, १००, २०० ब्राह्मण शिवकवचस्तोव के पढ़ने में, १५० ब्राह्मण शिवनाम स्मरण में प्रवृत्त हैं, और ५० ब्राह्मण सूर्य को नमस्कार करने में लगे हुए हैं । २५ ब्राह्मणों के अतिरिक्त सब को दक्षिणा दे दी गई । पहले जानेवाले ब्राह्मण लोग चले गए । अब तीन साढ़े तीन सहस्र ब्राह्मण ठहरे हुए हैं । अन्न सब में तीन सहस्र ब्राह्मण भोजन करते हैं और चार पाँच सौ ब्राह्मणों को नित्य भोजन का कच्चा सामान दिया जाता है । भोजन के पश्चात दक्षिणा में प्रति दिन दो तीन पैसे दिए जाते हैं । और जन्म अष्टमी को प्रत्येक ब्राह्मण को एक एक रुपया दिया