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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१११

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जायगा । इस समय केवल अनुष्ठान के ब्राह्मणों की दक्षिणा देना शेष है । जो ब्राह्मण लिंग पर अनुष्ठान करते थे, उनको आठ आठ रुपया, जप करनेवालों को पाच रुपया, शिव कवचवाले को आठ नौ रुपया, नमस्कार करने वालों को नौ दस रुपया दिए जाने की पद्धति है । प्रत्येक दिन पकात्र दिया जाता है और प्रतिदिन दो पैसे दक्षिणा दी जाती है । परंतु बीच में कभी कभी एक रुपया दक्षिणा भी दी जाती है । इसके अतिरिक्त सीधे के दो तीन सौ ब्राह्मण भी होते हैं । संपूर्ण श्रावण मास तक सीधा दिया जाता है । संतर्पण (कीर्तन) भी संपूर्ण मास भर रहता है । ब्राह्मणों के भोजन करने के पश्चात् जब चार घड़ी दिन शेष रहता है, तब बाई स्नान करने के पश्चात्, एक दो घड़ी दिन रहते रहते भोजन करती हैं । आपके साथ भी पच्चीस तीस ब्राह्मण भोजन करते हैं और श्री महाकालेश्वर उज्जैन में, श्री ओंकारेश्वर में प्रत्येक वर्ष पच्चीस पच्चीस ब्राह्मण अनुष्ठान करते हैं ।

चंद्र २९ मोहरमी से लगा कर चंद्र सफर तक बाई ने ब्राह्मणों को श्रावण मास के अनुष्ठान की दक्षिणा दी, केवल तीस सहस्र ब्राह्मण ही मिले थे । संपूर्ण मास भर ब्राह्मणों को भोजन में अच्छे अच्छे पदार्थ दिए गए थे । दक्षिणा पच्चीस हजार रुपया तक बाँटी गई ।

इस प्रकार बाई का नित्य तेम, व्रत, पाठ, पूजन, ६९ वर्ष की अवस्था होने पर भी नियमपूर्वक चलता था । बाई को शकुन देखने में भी अच्छा अधिकार था । प्रत्येक कार्य को शंकुन देख कर ही किया करती थी ।