प्रति सप्ताह रविवार, गुरुवार और संपूर्ण उत्सवों पर वारांगनाओं के गायन करने की व्यवस्था है । इस छत्री के निमित्त ११ गाँव सेंधिया सरकार की ओर से और १४ गाँव
दतिया नरेश की ओर से दिये हुए हैं जिनकी संपूर्ण वार्षिक आय ६००००) रुपया होती है । इन सब के अतिरिक्त अहिल्याबाई ने एक सदावर्त भी इस स्थान पर नियत किया था
जो आज दिन तक व्यवस्थित रीति से चला आ रहा है और जिसमें प्रति वर्ष लगभग १५००) रुपये तक का सदावर्त बाँटा जाता है ।
हरिद्वार--पश्चिमोत्तर प्रदेश में हरिद्वार स्थान पर कुशावर्त हरकी पैड़ी से दक्षिण की ओर गंगा का घाट बना हुआ है । यहाँ घाट के ऊपर पत्थर या लंबा मकान बनवा दिया है जिस में यात्री लोग पिंडदान करते हैं ।
काशी--यहाँ पर अति पवित्र पाँच घाट में से मणि-कर्णिका घाट और दूसरे चार घाटों से विख्यात है । इसके ऊपर मणिकर्णिका कुण्ड है, इससे इस घाट का यह नाम पड़ा है । १७ वें शतक के अंत में बाई ने इसे बनवाया था । राजघाटतथा अस्सी संगम के मध्य विश्वनाथ जी का सुनहला मंदिर है जो कि संपूर्ण शिवलिङ्गों में प्रधान है । यह मंदिर ५१ फुट ऊँचा और पत्थर का बना हुआ सुंदर शिखरदार है। मंदिर के चारों ओर पीतल के किवाड़ लगे हुए द्वार हैं । मंदिर के के पश्चिम में गुंबजदार जगमोहन और इसके पश्चिम से मिला हुआ दण्डपाणीश्वर का पूर्व मुख का शिखरदार मंदिर है। इन मदिरों का निर्माण बाई ने ही कराया था।