की धर्मशालाएँ थी । अब प्राय: सभी बड़ी बड़ी चट्टियों पर अंग्रेजी सरकार ने एक एक धर्मशाला बनवा दी है ।
विठूर या ब्रह्मावर्त—इस स्थान पर ब्रह्माघाट के अतिरिक्त गंगा के कई घाट बाई और बाजीराव पेशवा के भी बनवाए हुए हैं ।
काशी—यहाँ पर बाई का बनवाया हुआ एक घाट है, जो कि “नया घाट” के नाम से प्रख्यात है ।
लोलार्ककुंड—स्कंदपुराण में लिखा है कि शिवजी की प्रेरणा से राजा दिवोदास को काशी से विरक्त करने के लिए सूर्य गए थे; में दिवोदास को विरक्त तो न कर सके पर स्वयं अनुरक्त हो गए । और वहाँ पहुँच कर उनका मन चलायमान हो गया, इसलिये उनका नाम लोलार्क पड़ा । कार्य पूरा न होने के कारण उन्होंने दक्षिण दिशा में अस्सीसंगम के निकट धूनी रमाई । इस घटना के स्मरणार्थ भदैनी में, तुलसीदास के घाट के समीप एक प्रसिद्ध कूप बना है । इसको बाई ने और कूचबिहार नरेश ने बनवाया था । कुएँ की गोलाई ५ फुट है और एक ओर से पत्थर की ४० सीढ़ियों द्वारा कूप में जाने का मार्ग है और एक ऊँची महराव है । यहाँ आकर यात्रीगण कूप में स्नान करते हैं । लोलार्ककुंड की सीढ़ियों पर लोलार्क हैं और कुंड के ऊपरी भाग में दक्षिण की ओर लोकेश्वर हैं ।
नर्मदा— इस भव्य और विशाल नदी की गणना हिंदुस्थान की अत्यंत पवित्र नदियों में है । मध्य भारत के लोग पवित्र नदियों में से इस नदी को सबसे अधिक मान देते हैं । अधिक तो क्या परंतु प्रत्यक्ष गंगा नदी ही श्याम वर्ण गो का रूप धारण