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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१२६

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पूजन होता है । इस स्थान पर बाई का एक अन्नसत्र और एक धर्मशाला बनवाई हुई है जिसमें लगभग नित्य २०० मनुष्य भोजन पाते और रहते हैं । यह मंदिर लगभग ६०-७० फुट ऊँचा और भीतर से ३०-४० फुट है । यहाँ पर घी का दीपक दिन रात जलता रहता है । यह मंदिर भूरे रंग के पत्थर का बना हुआ है। इसमें बाहर की तरफ ऊपर से नीचे तक असंख्य देवी देवता की सुंदर मूर्ति खुदी हुई हैं जो अत्यंत प्रेक्षणीय हैं। नर्मदाजी के तट पर लगभग आधे फरलांग का एक घाट बना हुआ है जो कि जल के भीतर तक गया है । यहाँ पर यह विशेषता है कि यहाँ का जल सर्वदा गंभीर और अथाह रहता है । इस मंदिर में घड़ी, घंटा और चौघड़िया भी हैं । इसके अतिरिक्त बाई ने कई स्थलों पर धर्मशालाएँ और अन्नसत्र बनवाये थे। जो देवस्थान अपूर्ण रह गये थे उनको बाई ने अपने निज द्रव्य से पूर्ण कराया था और उनमें मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा पुनः कराई थी ।

हरप्रसाद शास्त्री अपने इतिहास में लिखते हैं कि बाई ने काशी में विश्वेश्वर और गया में विष्णुपद के मंदिरों को फिर से बनवाया था । और कलकत्ते से लेकर काशी तक एक उत्तम सड़क बनवाई थी । इन सब के अतिरिक्त गीष्म ऋतु में स्थान स्थान पर पौसले थे और शरद काल में अनाथों को कंबल प्रति वर्ष दिये जाते थे ।

अहिल्याबाई ने अपनी जन्मभूमि के स्थान पर एक शिवालय और एक घाट बँधवाया था । वह शिवालय आज दिन भी अहिल्येश्वर नाम से प्रसिद्ध है । इस मंदिर के खर्च