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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१३

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पर मल्हारराव निद्रादेवी की गोद में सुख से लेट अपने भावी सुख और संपत्ति का दृश्य देख रहे हैं। ग्रीष्म ऋतु के मध्याह्न काल के सूर्य अपनी उज्ज्वल और तीक्ष्ण किरणों के द्वारा उनके भाग्य के अक्षरों को शीघ्र पढ़ते चले जाते हैं। इनके ललाट के ऊपर सूर्य की अधिक तीक्ष्ण किरणों के कारण अफीम के बीज के समान छोटे छोटे पसीने के अनेक बिंदु देख पड़ते हैं, और वे ऐसे प्रतीत होते हैं मानों सूर्य भगवान स्वंय अपने किरणरूपी सहस्र करकमलों से मल्हार राव के लिलाट पर राज्याभिषेक का टीका स्वच्छ और बारीक मोतीरूपी पसीने से लगा रहे हैं। थोड़ी देर में पास ही एक झाड़ी से एक महाकाय काला सर्प निकला और अपने फन को मल्हारराव के मस्तक पर फैला और छाया कर बैठ गया, मानो सूर्य भगवान से यह पार्थना करता है कि इनके लिलाट में राज्याभिषेक नहीं है, अथवा इनके इस प्रकार के संचित कर्म नहीं है कि इनका राज्याभिषेक किया जाय ।

जब मल्हारराव की माता अपने पुत्र के शीघ्र खोजने की लालसा से अतिदुर्गम और कष्टदायक, तथा कांटों से पूर्ण मार्ग से नाना प्रकार के संकल्प और विकल्प करती, कई देवी देवता और कुलदेवताओं को अपने पुत्र को कुशल क्षेम से मिलने कि हितार्थ स्मरण करती, कभी कभी कुतर्कना के कारण रोती और बिलखती और फिर स्वच्छ अंतःकरण से अपने इष्ट देवता से पुत्र की रक्षा करने की प्रार्थना करती हुई उस स्थान पर पहुँची, जहां पर मल्हारराव सोए हुए थे, तो क्या देखती है कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरनेवाले श्रीशंकर महाराज के आभूषण