अपना फन फैलाए हुए उसके मस्तक के पास विराजमान हैं । यह दृश्य देख उसकी माती अत्यंत व्याकुल हो प्रेम और भय के कारण फूट फूट कर सिसकने लगी और उसके मन में नाना प्रकार की कल्पनाएँ पुत्र के हितार्थ उठने लगी और भय के कारण अपने नेत्रों को मूंद चराचर नायक संकटनिवारण परमदयालु परमात्मा को अपने जीवन के आधार, अपने प्राण प्यारे एकमात्र पुत्र की रक्षा के हितार्थ विनीत भाव से दोनों हाथों को अपने हृदय पर रख, पुकारने लगी ।
देव तू दयाल तू दानि हौं भिखारी ।
हौं प्रसिद्ध पातकी तु पापपुंजहारी ॥
नाथ ! मैं महा दुखिया हूँ। इस संसार में मुझे अपने एक मात्र पुत्र के सिवाय दूसरा आधार नहीं है, आप दीनों की सर्वदा रक्षा करते हैं, प्रभु! आपने अहिल्या का उद्धार किया, गजेंद्र का मोक्ष किया, प्रह्लाद का संकट निवारण किया, सुदामा का दरिद्र हटाया और मोरध्वज के पुत्र रत्नकुमार को जीवन दान दिया । हे सर्वव्यापी ! मैं आपकी शरण में हूं । आप मेरी और मेरे पुत्र की रक्षा करें । मल्हारराव की माता इस प्रकार से प्रार्थना कर रही थी कि तत्काल भाई भोजराज उस स्थान पर आ उपरिथत हुए और अपनी बहन से पूछने लगे कि क्या मल्हारी नहीं मिला । भाई के शब्दों को पहिचान तुरंत नेत्र खोल मल्हारी की माता सजल नेत्रों से पुत्र की ओर अँगुली दि खाकर विवश हो रोने लगी । भोजराज जो कि अभी तक यहा के वृत्तांत से अपरिचित थे, बहिन के अँगुली के बतलाए हुए संकेत को न समझे और पुनः अपनी बहिन से पूछने