पति और पुत्र अर्थात् जितने थे वे सब स्वर्ग को सिधार गए
ये और इधर धन-लोलुप लालचियों ने राज्य का सर्वनाश
करने का बीड़ा उठाया था। इस प्रकार की सब आपदाओं
से अपने अंतःकरण को खींच एक ओर निश्चित और अचल
रूप से लगा देना क्या कोई सामान्य बात है? ऐसे आपत्ति
के काल में पुरुषों का भी धैर्य नष्ट भ्रष्ट हो जाता है। यहाँँ तक
कि कोई कोई अपने प्राणों तक पर आघात कर लेते हैं अथवा
दुःखी होकर अपना शेष जीवन व्यतीत करते हैं।
पुत्र-शोक के कारण अपने होम रूल में आपत्ति देखकर धैर्यवान् युद्ध परंतु तरुणों की अपेक्षा तरुण ऐसे राजऋषि ग्लैडस्टन जब दुःखसागर में डूब गये थे तो फिर उनमें उठने की सामर्थ्य नहीं रही थी। और भारत के सच्चे हितैषी, लोकप्रिय, सर्वगुणसंपन्न साधु वर्क भी अपने पुत्र-शोक के कारण अचेत हो रहे थे। महाराजाधिराज राजा दशरथ का भी पुत्र के बिछोह से स्वर्गवास हो गया था। तो फिर स्त्रियों का क्या कहना। वे स्वयं स्वभाव से कोमल अंतःकरणवाली, प्रेमपूर्ण, अधीर और शीघ्र भयभीत होनेवाली होती हैं। परंतु धन्य थीं अहिल्या बाई कि जिनके उपर तरुण अवस्था से लेकर वृद्धावस्था और मरण पर्यंत दुःख के सागर के सागर उमड़ पड़े थे । तो भी वह दृढ़चित्त हो अपने सत् मार्ग पर आरूढ़ रहीं। ऐसे समय पर भी बाई ने अपना धैर्य,साहस और नित्यकर्म नहीं छोड़ा था । क्या यह कोई साधारम बात थी?
जगतप्रसिद्ध शेक्सपियर का कथन है कि दृढ़ विश्वास रखनेवाले मनुष्य में स्वयं परमात्मा का ही अंश रहता है ।