पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१५०

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विद्वानों का कथन है कि परमार्थ का मुख्य समाधान कारक साधन श्रवण है। श्रवण से भक्ति मिलती है, विरक्ति उत्पन्न होती हैं और विषयों की आसक्ति दुटती है। श्रवण से चित्त की शुद्धि होती है, बुद्धि दृढ़ होती है और अभिमान की उपाधि का लोप होता है। इससे विवेक आता है और ज्ञान प्रबल होता है। श्रवण से निश्चय आता है, ममता टूटती है और अंतःकरण में समाधान होता है। श्रवण से संदेह का नाश होता है और सद्गुण आते हैं। श्रवण से मनोनिग्रह होता है, समाधान मिलता है और देह-बुद्धि का बंधन अलग होता है। श्रवण से अहंमन्यता दूर होती है, जड़ता नहीं आती और अनेक प्रकार के विघ्न भस्म होते हैं। इससे कार्य-सिद्धि होती है और पूर्ण शांति प्राप्त होती है। श्रवण से प्रबोध बढ़ता है, प्रज्ञा प्रबल होती है और विषयों के पाश टूट जाते हैं। श्रवण से सद्बुद्धि आती है, विवेक जागता है और मन भगवत-भजन में लगता है। श्रवण से काम की वासनाएँ क्षीण होती हैं, भय का नाश होता है, स्फूर्ति का प्रकाश होता है और निश्चयात्मक सद्वस्तु का भास होता है। श्रवण के समान और कोई उत्तम साधन नहीं है। यह तो सब को प्रत्यक्ष ज्ञात है कि प्रवृत्ति माग हो अथवा निवृत्ति मार्ग हो, परंतु श्रवण के बिना किसीको भी मोक्ष मार्ग की प्राप्ति नहीं होती। नाना प्रकार के व्रत, दान, तप इत्यादि श्रवण के बिना नहीं जाने जाते। जिस प्रकार अनंत वनस्पतियाँ एक ही जल से बढ़ती हैं और एक ही रस से सब जीवों की उत्पत्ति है; और जैसे संपूर्ण जीवन एक ही पृथ्वी, एक ही सूर्य और