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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१५१

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एक ही वायु से सधे हैं, जिस प्रकार अब जीवों के आस पास आकाश एक ही है और संपूर्ण जीव एक ब्रह्म में बसते हैं, उसी प्रकार मनुष्य मात्र के लिये शरण ही एक मात्र साधन है। श्रवण का ऐसा तात्कालिक गुण है कि महा दुष्ट और चांडाल भी पुण्यशील हो जाता है। श्रवण से शांति मिलती है और निवृत्ति तथा अचल पद प्राप्त होता है। इस संसार रूपी भवसागर को पार करने के लिये श्रवण ही नौका है।

शास्त्र के श्रवण से ही मनुष्य धर्म जानता है और उसीसे बुद्धि सुधरती है, उससे मनुष्य ज्ञान पाता है और उसे उसीसे मोक्ष पाता है । यह शरीर नश्वर है। सपत्ति भी सदा नहीं रहती और मृत्यु सर्वदा साथ ही रहती है । इसलिये धर्म का संग्रह करना आवश्यक है । जीना उसी मनुष्य का सफल है जो गुणी और धर्मात्मा हो । गुण धर्म से हीन मनुष्य का जीवन व्यर्थ है । बुरों का सहवास छोड़ साधु और बुद्धिमान की संगति करना लाभदायक है । अपने पुरुषार्थ भर धर्म-संग्रह करें और नित्यप्रति ईश्वर का भजन पूजन तथा स्मरण करें, क्योंकि यह संसार अनित्य है । विद्वानों ने कहा है कि जो जीव आत्मा परमात्मा को जाने, जो अच्छे अच्छे कार्य करे, सहनशील हो, सदा धर्म पर ही आरूढ़ हो और जो धन के लोभ में न फँसता हो वही बुद्धिमान् है। जिसके विचार को और विचारे हुए कार्य को सब कोई जानते हैं वही चतुर है । जिसकी बुद्धि धर्म और कार्य की अनुयायिनी होती है और जो कार्य से अर्थ को स्वीकार करता है, वही सुजान है । जो