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अश्रु के बिंदुओं की झलक और पुलकित कोमल होंठ स्पष्ट रूप से उनके आनंद की साक्षी देने लगे । मध्याह्न काल के पश्चात् की मंद मंद वायु और पक्षियों का पुनः अपने अपने घोसलों से निकल कर आपस में चों चों रूपी गायन, और झाड़ियों की कोमल पत्तियां पवन मे झूम झूम कर मल्हारराव की माता को उनके पुत्र की भाग्यश्री का मानो वृत्तांत सुना रही हैं ।
मल्हारराव की माता पुत्र के निकट पहुँच उसको अपनी गोद में लेकर अपने हृदय से चिपटाने लगी और उसके मस्तक को सूँघने लगी । जिस प्रकार नवप्रसूता गौ अपने बछड़े को चाटकर, तथा कई दिन पश्चात् पति पत्नी के दर्शन और पिता पुत्र के मिलने पर या कंगाल खोए द्रव्य के मिलने पर एक दूसरे को हृदय से लगाते हैं उसी भांति मल्हार राव की माता अपने पुत्र को बारंबार हृदय से लगा मुख का चुंबन करने लगी और उसके अग की धूल झाड़कर अपने पल्लू से, जो थोड़ी देर पहले अश्रुओं से भींग गया था उसझे मुख को पोंछने लगी । पश्चात् पुत्र को प्रेमयुक्त वचनों से अकेला न निकलने का थोड़ा उपदेश दे, और लाया हुआ भोजन खिला उसको घर लिवा ले गई । इधर भोजराज भी अपनी खेती के धंधे में जुट गया, परंतु उसके मन में यह विश्वास होगया कि मल्हारी कोई होनहार लड़का है।
गाँव में धीरे धीरे सर्प का मल्हारी पर छाया करके बैठने का समाचार फैला,तब प्रत्येक व्यक्ति अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार तर्क करने लगा । कोई कहता, यही एक दिन राजा होगा,