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कोई कहता इसके भाग्य में सुख है, कोई कुछ, और कोई कुछ; परंतु इस समाचार को सुनकर सब का मल्हारी से थोड़ा प्रेम हो गया।
जब मल्हारराव आठ वर्ष के हुए तब वे बड़े निडर, साहसी और झगडालू प्रतीत होने लगे। इनके विद्याभ्यास की कोई व्यवस्था न होने से ये सदा खेल कूद में ही अपना समय व्यतीत किया करते थे । अधिक साहसी और झगडालू होने के कारण इनके साथी इनसे भय खाते थे और इनैकी हा में हा मिला दिया करते थे । बहुधा मल्हार राव अपने साथियों की टोली बना बना कर और आप उसके अगुआ बनकर इधर उधर गाँव में खेला करते थे। उनके लडकपन के एक खेल "जबरदस्त का मूसळ सिर पर" "Might is right" का हाल यहाँ देने से यह सहज ध्यान में हो जायगा कि वे कितने साहसी और निडर थे। विद्वान और अनुभवी लोगों का कथन भी है कि जिस प्रकार का बालक अपने जीवन के आरंभ में होता है उसी प्रकार का वह मनुष्य भी निकलता है। विद्वानों का कथन है कि "होनहार बिरवान के होत चीकने पात ।"
एक दिन मल्हारराव अपने सब साथियों को एकट्ठा कर एक टोली बना और आप उसके सरदार बन गाँव में चक्कर लगाने लगे। ये टोली के आगे आगे अपने हाथ में जुवार का एक डंठल ले और उसके सिरे पर एक चिथड़ा बाँध उसे ऊँचा उठाए चले जा रहे थे कि अचानक उनकी दृष्टि एक मिठाई बेचनेवाले की दुकान पर पड़ी, तुरंत उन्होंने उस डंठल को