पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१६४

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चार दिन के लिये अपना गौरव बढ़ाने में व्यग्र रहते हैं, और बिचारे भोले भाले मनुष्यों पर छल, कपट करके अपना स्वार्थ साधते हैं । दूसरों का द्रव्य हरण करना अथवा दूसरों की मानहानि करके स्वयं अधिकारी बननाही ये अपना उत्तम कर्म और गौरव समझते हैं । उनके आचार, विचार और व्यवहार से सदा लोगों को कष्ट होता रहता है । परंतु दुःख की बात है कि वे अपना अंतिम परिणाम भूले हुए हैं, बहुधा देखा गया है कि आज कल के रक्षक ही भक्षक होते हैं ।
(४) इंदौर और महेश्वर के मध्य में एक प्रसिद्ध प्राचीन जामघाट नाम का स्थान है । यहाँ पर एक दरवाजा है जो लगभग २५ गज लंबा २० गज चौड़ा और ४०-५० फुट ऊँचा है । इस दरवाजे के दोनों ओर बड़े बड़े भव्य दो खंभे हैं ! दूसरे मंजिल पर छज्जे हैं और दक्षिण की तरफ दीवाल में तीन खिड़कियाँ हैं । दरवाजे की छत पर शामयाने लगाने के गट्टे आज दिन भी जैसे के तैसे ही हैं । उस छत पर से अत्यंत प्रेक्षणीय दृश्य दृष्टिगोचर होता है ।
लगभग २००० फुट नीचे की ओर जौर दरवाजे से लगभग १८ मील के अंतर पर जगतप्रख्यात नर्मदा जी बहती हैं। यहाँ से सतपुड़ा और विंध्याचल पर्वतों की विशाल छवि, तथा सघन अरण्य ऐसा प्रतीत होता है, मानो सृष्टि ने महात्माओं के हितार्थ अपनी ओजस्विनी और सुंदर छवि धारण की हो। यह स्थान दर्शन करने के योग्य है । इस दरवाजे पर जो सामने पत्थर पर लेख लिखा हुआ है, वह इस प्रकार है--