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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१७०

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में क्या दशा होगी ? मेरे मृत पति मुझको पुनः प्राप्त तो नहीं हो सकते। यदि मैं जीवित रही तो मुझे अकेले इन विशाल भवनों में भूत के समान निवास करना पड़ेगा क्योंकि मेरे अंतःकरण का निवास तो मेरे मृत पति के साथ ही रहेगा। इम कारण मेरी प्यारी और श्रेष्ठ माता मेरी विपत्ति पर पूर्ण विचार करो और मेरे दुःखों का आदरपूर्वक अंत होने दो।

यह सुन अहिल्याबाई ने अपने निस्वार्थ प्रेम के वेग से पुत्री को सती जाने से रोकने के लिये तीक्ष्ण शब्दों में कहा कि जो अच्छी और सदाचारी स्त्रियाँ होती हैं उनकी जब मृत्यु होती है तब इनका प्रतिष्ठित अंत उसी समय हो जाता है, चिता की अग्नि में प्राण देने से केवल निरर्थक लोक व्यवहारिक प्रसिद्धि के और कुछ प्राप्त नहीं होता।

यह सुन मुक्ताबाई ने कहा- माता मैं प्रसिद्ध होना नहीं चाहती। तुम ऐसे कठोर शब्दों का उपयोग कर मेरे कष्टों को जो पहले ही से असहनीय हो रहे हैं मानसिक वेदना न पहुँचाओं, जीवित रहना तो मेरे लिये मृत्यु और उससे भी अत्यंत दुखदाई होगा। मेरे पश्चात्ताप की भीतरी वेदना मेरे जीवन को अंधकार में परिणत करेगी। और मुझे रात्रि में अत्यंत भयंकर स्वप्नों की वेदना होगी। क्योंकि मेरे स्वप्न में मेरे पति सर्वदा मेरे पास ही निवास करते हुए दृष्टिगत होंगे और उस समय उनकी धिक्कारने वाली दृष्टि मुझे इस विशेष कारण से भयभीत प्रतीत होगी कि उन पर मेरा प्रेम, एक क्षण भर के नीच दुःखों से अचल न रह सका, किंतु मैंने उनके अंतिम प्रेम से और अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ उनकी