पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१७३

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किया तब संपूर्ण उत्सुक दृष्टियाँ उनकी ओर एकाएक झुक गई और प्रत्येक मनुष्य के हृदय में बाई के निमित्त करुणा का दीपक जलने लगा । दर्शकों के अंत:करण का भीतरी दुःख किसी प्रकार न रुका और चहुँ ओर से ऊँची और मिली हुई करुणा भरी ध्वनि निकलने लगी और जैसे जैसे लंब्रा दृश्य स्मशान की ओर बढ़ता जाता था वैसे वैसे अनेक वाद्यों की विचित्र दुःस उत्पन्न करनेवाली ध्वनि आकश में गूंजती हुई सुनाई देने लगी ।

अंत को जब यह दृश्य उस अंतिम स्थान (स्मशानभूमि) पर पहुंच गया तब इस कोमल हलचल में एक प्रकार की गहरी और गंभीर शांति छा गई जो कि एक चमत्कारिक और अनोखे भय से मिली हुई थी ।

किन शब्दों में बाई के अपनी पुत्री से अंतिम मिलाप का हृदयविदारक दुःख वर्णन किया जाय जब वह युवा विधवा अपनी माता से हृदय को हृदय लगा कर मिली और उसने अपनी अंतिम विदा मांग !

उपरांत विधवा अपने मृत पति की देह को हृदय से लगा अपनी गोद में भयभीत और कांपते हुए हाथो से, कि कहीं जीवन के आधार प्राणपति का मृत शरीर हाथ से न छूट पड़े, रख चिता पर विराजमान हुई, पश्चात् चिता के उस ऊँचे ढेर को जो कि संपूर्ण सुवासित सामग्रियों से रची गई थी जलती हुई आँच लगा दी गई ।

इस समय लकड़ियों के ढे़र से पीले टेढ़े मेढे धुएँ के बादल नींद से जागे हुए सर्पा के तुल्य निकलते हुए दृष्टिगत