सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( १६३ )


पहने हुए और पृथ्वी की ओर उदास चित्त से देखते हुए निकले । इनके पीछे पीछे पगड़ी पहने हुए, अस्त्र शस्त्र से तथा पोशाक से सुसज्जित कमर में शालजोड़ियों की कमर पेटी बाँधे हुए और हाथ में चमचमाती तलवारें लिए हुए उदास सरदारगण दिखाई दिए । पश्चात् पदाधिकारी वर्ग, और अन्य राज्यों के प्रतिनिधि लोग तथा कारकून वर्ग के लोग अनेक कतारों में उदास चित्त से मार्ग पर धीरे धीरे धीमी चाल से चलते हुए और दुखित दशा में पृथ्वी की ओर देखते हुए देख पड़े । इस समय पृथ्वी से भी इनके चलने के कारण एक प्रकार की उदास ध्वनि निकलती थी ।

पश्चात् महलों के द्वार से एक भव्य अर्थी मित्रों से और कौटुंबिक जनों से चहुँ ओर घिरी हुई, जिस पर यशवत राव का मृत देह मूल्यवान और चमकीले वस्त्रों से ढँका हुआ था, देख पड़ी । मृत यशवंत राव के अवयवों में उस समय भी कटे हुए पत्थर के समान आदरणीय सौंदर्य भरा हुआ था, उस समय दर्शकों ने अपनी अपनी दृष्टि उस ओर जमाई और वे नाना प्रकार से अनेक शब्द उसकी प्रशंसा में एक दूसरे से बहुत समय तक गुनगुनाने लगे । तदुपरांत अर्थी के पीछे वरुण विधवा को अवलोकन करतें ही संपूर्ण जनसमूह ने अपनी अपनी दृष्टि पृथ्वी की और नाची कर ली । विधवा की मैं और चाल से वह पूर्णरूप से दुःखसागर में डूबी हुई जान पड़ती थी ।

पश्चात् हृष्ट पुष्ट पुरोहितों और ब्राह्मणों के मध्य चलती हुई अपनी देवतुल्य रानी को अब संपूर्ण दर्शकों ने अवलोकन