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वहीं खड़े खड़े वे हाथ हिला पैर बढ़ाने लगे और अपने मन में विचार करने लगे कि यह काम तो मैं बहुत शीघ्र सीख सकता हूँ, कोई कठिन नही है, परंतु अपना विचार किस पर प्रगट करना चाहिए ? क्योंकर अपने को यहाँ नौकरी मिल सकती है ? इधर सायंकाल हुआ जान घर चलने का विचार भी उनके प्रफुल्लित मन में एक प्रकार का विघ्न डालने लगा। निदान एक सिपाही को अपनी ओर आते हुए देख उन्होंने उस पर अपने विचारों को प्रगट करने का दृढ़ संकल्प किया और उसके समीप आने पर निशंक हो आपने अपने विचार उस पर प्रगट कर उत्तर चाहा । साधारण पूछ पाछ के पश्चात वह सिपाही इनको अपने नायक के पास लिवा ले गया और इन का थोड़े में संपूर्ण हाल सुना उसने इनका मुख्य उद्देश कह दिया । नायक इनको मरहठा बालक जान अपने मालिक, फौज के अफसर, के पास जो कि स्वयं मरहठा कुल के भूषण थे, ले गया और यह बालक नौकरी की इच्छा से यहां आया है, कह सुनाया। सोलह वर्ष के बालक की प्रतिज्ञा और साहस को देख सरदार बहुत प्रसन्न हुआ और कल से तुम को नौकरी मिल जायगी, कल से यहीं आन कर रहना होगा, इतना कह रात को वहीं ठहरने की उसने अनुमति दी, परतुं इन्होंने अपने मालिक से स्पष्ट रूप से कह दिया कि माता राह देखेगी, मैं उनसे बिना कहे ही इधर आया हूँ । यह कह उन्होंने वापिस लौटने की आज्ञा चाही, तथा दूसरे दिन नौकरी पर उपस्थित होने का वचन दे वे अपने घर को लौट आए। घर पर आकर जब यह सारा वृत्तांत उन्होंने अपने मामा और माता को उमंग से भरे हुए शब्दों में कह