पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/२३

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सुनाया, तब माता को तो पुत्र की नौकरी लगने की अत्यंत खुशी हुई परंतु मामा बहुत अप्रसन्न हुए, क्योंकि वे फौजी नौकरी के विरुद्ध धे। उन्होंने कहा कि तुमने लड़कपन किया है। तुम अभी बालक हो, तुम्हें इस बात का ज्ञान नहीं है कि फौज की नौकरी कितनी कठिन और जान जोखिम की होती है। फौज के आदमी को सर्वदा अपना मस्तक हाथ पर लिए रहना पड़ता है, उससे जन्म भर सिवाय कष्ट और भय के कुछ नहीं प्राप्त होता है। फौज की नौकरी करना मानो मौत की मित्रता बढ़ाना है, तुम कोई दूसरी नौकरी करो। मामा भोजराज के लिए जो खेती जैसी शांतिमय उद्यम करके अपनी जीविका चलाते थे, ये विचार ठीक ही थे, क्योंकि उस समय जगह जगह इस समय के समान शांति और सुख का राज्य नहीं था, वरन जहां देखो वहां लूट मार, काट छाँट, प्रति दिन सुनाई देती थी। दूसरे भोजराज ने अपनी कन्या का विवाह भी इनके साथ कर दिया था, इस कारण दोनों ओर के प्रेम और मोह में फँस वे यह नहीं चाहते थे कि मल्हारी फौज में भरती होकर नौकरी करे, परंतु मल्हारराव जैसे साहसी और निश्चयी, स्वच्छंद और उत्साही बालक के विचारों को कौन लौटा सकता था? आपने अपने मामा की एक न सुनी और दूसरे ही दिन प्रातःकाल उठ और नित्य कर्म से निवृत्त हो अपनी माता के श्रीचरणों में साष्टांग दंडवत कर और वाणी के सदृश माता का हार्दिक आशीर्वाद ले आप अणकाई के किले की तरफ चल पड़े। वहाँ पहुँच कर इन्होंने फौजी काम सीखना आरंभ कर दिया। ये जो कुछ काम