सीखते थे वह बड़े ध्यानपूर्वक और परिश्रम के साथ सीखते
थे, और जब रात के भोजन से निवृत्त होते थे, उस समय
सारे सिपाही तो निद्रा देवी की गोद में चैन से लेटते थे परंतु
मल्हारराव जो कार्य दिन में सीखा करते थे, उसका अभ्यास
बड़ी सावधानी से किया करते थे । होनहार और उन्नति की
उमंग से भरे बालकों का यह एक लक्षण है कि वे अपने कार्य
में जुट जाते हैं और उसमें जो कुछ सीखने योग्य है उसको
प्राप्त करने के लिये अपना जीवन सर्वस्व उसी में अर्पण कर
देते हैं । उन्हें सर्वदा यही चिंता रहती है कि मैं काम को उत्तम
रीति से कर दिखाऊ और अपने अधिकारी की प्रसन्नता प्राप्त
कर लू । उनके काम में चंचलता, भाषण में विलय से युक्त
दृढ़ता, और बर्ताव में साहसयुक्त धीरता दिखाई देती है । जिस
काम को उठाया उसे पूरा ही करके छाड़ने का उनका संकल्प
अचल होता है । मल्हारराव जितने जिज्ञासु उतने ही परिश्रम-
शील भी थे । इस कारण इन्होंने दो ही वर्ष में सब फौजी काम
को उत्तम रीति से सीख लिया और इस समय इनकी
गणना भी उस समूह के अच्छे और बहादुर सिपाहियों में होने
लगी और उनकी कीर्ति धीरे धीरे सारी फौज में होने लगी ।
जब फौज के अफसर को यह समाचार मालूम हुआ, तो उसको
एक प्रकार का अचरज हुआ कि मल्हारराव एक छोटा सा
लड़का होकर अपने कार्य में दोही बरस के समय में इतना
होशियार हो गया कि सब सिपाहियों में उसकी धाक जम गई।
यह अवश्य ही कोई होनहार बालक है ।
थोड़े ही दिन पीछे पेशवा और निजाम के बीच में युद्ध
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