पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/३३

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थे अथवा जिन्होंने उनकी राज्यशैली, धर्मपरायणता और चतुरता तथा बुद्धिमत्ता का स्वयं अनुभव किया था । ऐसे लोगों से बड़े उत्साह और आदर के साथ इन्होंने संपूर्ण वृत्तांत को सुना, तब आपने, अहिल्याबाई के संपूर्ण अलौकिक गुणों पर मुग्ध हो और स्वच्छ अंत:करण से इस प्रकार लिखा है कि "होलकर घराने के मनुष्यों से और उनके आश्रित जनों से जो हालात अहिल्याबाई के गुणों के और राज्यशासन के बारे में मिले थे उनको सत्यता की कसौटी पर कसने के हेतु इधर उधर पूछ ताछ की गई तो पूर्ण विश्वास हुआ कि यथार्थ में वे प्रशंसनीय थे और उन वृत्तांतों से और उन मनुष्यों से यह भी ज्ञात हुआ है कि अहिल्याबाई की राज्यप्रणाली में जो जो विशेषता तथा उतमता थी वे प्रचलित राज्यप्रणाली से कई गुना प्रशंसनीय, उत्तम, और चढ़ी बढ़ी थींं। सब छोटी और बड़ी जाति के मनुष्यों से अहिल्याबाई के संबंध में जब हालात पूछे गए तब ऐसा हाल कहीं भी नहीं मिला, जिससे उनकी धवल कीर्त्ति में कुछ भी लांछन लगता वरन अहिल्याबाई के नाम के श्रवण मात्र से ही सब मनुष्य एक स्वर से उनके गुणों की कीर्ति तथा उनके परोपकार का यश आनंदित हो कर गाते थे । अहिल्याबाई के संबंध में जितनी अधिक खोज होती गई, उतना ही अधिक पूज्य भाव और कुतूहल बढ़ता गया ।

तात्पर्य यह है कि मालकम साहब ने जितनी खोज अहिल्याबाई के राज्यशासन के, धर्मपरायणता के और जीवन