के उपरांत कथाश्रवण तथा दानधर्म करके गृहकार्य की प्रत्येक वस्तु को यथास्थान साफ सुथरी रखवाती। इन्होंने अपने यौवन काल में भी अपना समय भोग विलास में नहीं व्यतीत किया था। परमात्मा की असीम कृपा से ईसवी सन् १७४५ में देपालपुर स्थान पर अहिल्याबाई को एक पुत्र, जिसका नाम मालीराव था, उत्पन्न हुआ था, और तीन वर्ष पश्चात् अर्थात् इसवी सन १७४८ में एक कन्या पैदा हुई थी, जिसका नाम मुक्ताबाई था।
जय मल्हारराव ने अपनी पुत्रवधू के आचार, विचार, नियमपूर्वक धर्म की शैली, तीक्ष्ण बुद्धि और प्रत्येक कार्य को विचारपूर्वक उमंग भरे हुए मन से करने से चतुराई को ध्यानपूर्वक निरीक्षण किया तो उन्होंने प्रसन्न चित्त और आदर मे अहिल्याबाई को गृह संबंधी संपूर्ण कार्य का भार, व्यवस्थांपूर्वक उत्तम रीति से चलाने के सौंप दिया, और जय, अहिल्याबाई गृह संबंधी संर्पण कार्य को उत्तम, और विचार पूर्वक व्यवस्थित रूप से चलाने लगी, तब खंडेराव पर इसका बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ा। अहिल्याबाई ने अपने प्राणपति को, नित्य प्रेम और आदरपूर्वक नाना प्रकार के पौराणिक और लौकिक दृष्टांत इस प्रकार बुद्धिमानी और चतुरता के साथ सुनाए और अपने पूज्य सास और ससुर के हार्दिक प्रेम भरे हुए विचारों को विनयपूर्वक इस उत्तमता से अपने पतिदेव पर प्रकट कर दिया कि खंडेराव के मन,पर उनका अच्छा प्रभाव पड़ा और उन्होंने शनैः शनैः अपने मन को