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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/३६

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के साथ, करने लगीं। गृहस्थी का कार्य भी वे बड़ी चतुराई और सुघराई के साथ मन लगाकर करती थीं। खंडेराव का स्वभाव उग्र और हठी तो पहले ही से था परंतु उसमें अब एक विशेषता यह हो गई थी, कि इनका हाथ व्यय करने में अधिक खुल गया था। अपने स्वामी का ऐसा स्वभाव देख अहिल्याबाई मन ही मन दुःखी हुआ करती थी, परंतु ऐसे विशेष कारण के रहते हुए भी पतिभक्ति में कुछ अंतर नहीं करती थीं, किंतु अपने स्वामी को बड़ी श्रद्धा, आदर, प्रेम और पृज्य भक्ति से देखती थीं।

जिस दिन से मल्हारराव अपनी पुत्रबधू अहिल्याबाई को विवाह करके घर लाए उसी दिन से उनका, उन पर बड़ा वात्सल्य और स्नेह हो गया था, जो दिन पर दिन बढ़ता ही गया। जब कभी मल्हारराव राज्यकार्य के कारण चिंतित तथा व्यग्र रहा करते थे उस समय बड़े बड़े दलपतियों तथा स्वयं उनके निज दरबारियों का भी साहस उनके समक्ष उन से कुछ निवेदन करने का नहीं होता था, परंतु ऐसे समय में भी यदि अहिल्याबाई कुछ कहला भेजतीं तो वे उस कार्य का बिना विलंब प्रसन्न बदन हो तुरत पूरा कर दिया करते थे। अहिल्याबाई सारा दिन और पहर रात पर्यंत समय अपने सास ससुर की सेवा और गृहकार्य के संपादन तथा निरीक्षण में व्यतीत करता था, और पहर रात बीत जाने पर शयनगृह में जाकर पतिसेवा में दृढ़चित्त होती थीं, और प्रातः काल पौ फटते ही सबके पूर्व शय्या से उठकर और अपने नित्य के कर्मों से निवृत्त होकर ईश्वर पूजन में मिग्न होती थी। इस