पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( ३१ )


इस कारण इन्हें छोड़कर श्रीरामचंद्र जी के चरणों की सेवा करो । जो मनुष्य सगुण उपासना करते हैं, जो बड़े हितकारी हैं, जो नीति में निरत हैं, नियम में दृढ़ है, और जिनकी ब्रहाण के चरण कमलों में प्रीति है, वे मनुष्य मुझको प्राणों के समान प्यारे लगते हैं ।

कृपानिधान सुज्ञान प्राणपति, तुम्हारी सुध कैसे विसरावे ।
संकटहरण भरण पोषणता, इनकी जब सर में सुध आवे ।।
पल पल प्रीति जिया में उमँगत, नैनन में मधुरी छवि छावे ।।
जिनको जीवन चरण तुम्हारे,केहि विधि वे निज समय चितावे ।।
चत्सलता, ममता, सुशीलता, सुंदरता प्रति पल सुध लावें ।

पदमाला में ।

इन्ही उपरोक्त उपदेशों को ध्यान में रखकर अहिल्याबाई सदा ईश्वर के भजन पूजन में दृढ़ रहती थी और यही कारण था कि एक अचला स्त्री ने इस उत्तमता और योग्यता के साथ अपने बिस्तीण राज्य का शासन भली भांति तीस वर्ष तक किया जिसको सुनकर मनुष्य मन ही मन मुग्ध हो जाते हैं ।

पुराने इतिहास के अवलोकन से यह भी प्रतीत होता है कि अहिल्याबाई के भाई और बहिन भी थे, क्योंकि महेश्वर दरबार के जो कुछ पुराने पत्र व्यवहार अदि के कागज हस्तगत हुए हैं, उनमें यह हाल अर्थात भाई और बहन का आन कर मिलना दिया हुआ है ।        {{{1}}}