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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/४१

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तीसरा अध्याय ।
खंडेराव और मल्हारराव का स्वर्गवास् ।


“खुदा की कुदरत खुदा ही जाने, तू क्या जाने वोल दिवाने”

जब मल्हारराव को पूर्ण रीति में विश्वास होकर यह प्रतीत हो गया कि खंडेराव ने युद्ध के कामों को सीख कर साधारण योग्यता प्राप्त कर ली है तो आप अपने साथ पुत्र को भी लड़ाइयों में तथा अपने प्रांत के सुप्रबंध के निरीक्षण के लिये समय समय पर ले जाने लगे । इसी प्रकार सन् १७५४ में खान देश से प्रस्थान करते हुए अपनी सेना के साथ पिता पुत्र दोनो ने अजमेर में प्रवेश किया और वहाँ पर पहुँच कर वे अपनी तलवार के बल से चौथ वसूल करने लगे, क्योंकि वहाँ के निवासियों के मल्हारराव ने इसके पूर्व नियमित कर देने के हेतु नाना प्रकार से कई समय प्रेमपूर्वक समझाया था । परंतु उसका फल कुछ नहीं हुआ । यह जान कर मल्हारराव ने उनको इस समय युद्ध में परास्त करके अपना रूपया वसूल करने का संकल्प किया था, परंतु वहाँ के जाट लोगों को इस प्रकार का कष्ट महन न हुआ और उन्होंने स्पष्ट शब्दों में मन्हारराव से कह दिया कि जब तक हम लोग जीवित रहेंगे आपके किसी प्रकार का कर नही देवेंगे । यदि आप युद्ध का भय दिखाते हैं तो हम भी युद्ध के लिये तय्यार हैं। अंत को भरतपुर राज्य के डीग के पास कुंभेर के दुर्ग पर मल्हार