पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/६४

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करना, वरन अपने सरस बर्ताव से इसे सदा प्रसन्न रखना और कदाचित् इसपर क्रोध भी आवे तो इसे हृदय में ही गुप्त रखना, ऐसा न हो कि उसका चिन्ह कभी मुख पर झलकने लगे। कभी कुवाक्यरुपी तप्त जल इसके, चमेली के पुष्प सदृश, कोमल हृदय पर छिड़क कर उसे झुलसा न देना । बेटा, आम की मंजरी या सिरस का फूल भौरों ही के स्पर्श को सहन कर सकता है, अन्य की स्पर्शरूपी चोट से छिन्न भिन्न हो जाता है, यहाँ तक कि खिला हुआ फूल हाथ फेरने से ही कुम्हला जाता है । सब धर्म शास्त्रों का यही मत है, कि स्त्रियों की शिक्षा का गुरु स्वामी ही है, अभावपूरक कामनाओं के लिये अनेक व्यक्तियों के अनेक सहायक होते हैं, परंतु स्त्रियों के लिये स्वामी को छोड़ कोई दूसरा सहायक नहीं है । यदि तुम टुक विचार करो और शांत चित्त हो देखोगे तो समझ जाओगे कि स्त्री ही पुरुष की अमोघ शक्ति, शांति की खान, सुखदायिनी और आनंद की मूर्ति है । बाहर तुमको कितना ही कष्ट क्यों न उठाना पड़े परंतु घर आने पर और स्त्री के मुखचंद्र का दर्शन करने पर तुम सब दुःख भूल जाओगे । प्रेम से प्रेम बढ़ता है । स्त्रियां ही हमारे गृह को नंदन वन बना देती हैं। जिन स्त्री पुरुषों में परस्पर प्रेम नहीं होता, उनको किसी वन के रहनेवालों के समान भी सुख नई प्राप्त होता, उनका जीवन सर्वदा दुःखमय बीतता है। विद्वानों का कथन है कि जिस घर में स्त्रीरत्न नहीं, वह प्रकाश रहित है। प्यारे पुत्र, जो कुछ मैंने कहा उसी पर आरूढ़ रहना। अंत में यशवंतराव को हृदय से लगा इन्होंने आशीर्वाद दिया,