पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( ६२ )


का रक्त नष्ट करके की है। यह बात आप लोगों से भी छिपी नहीं है। परंतु आज मुझ अबला और अभागिन पर दुष्टों ने धन की लालसा से चढ़ाई कर इस समस्त राज्य को हड़पने का पूर्ण विचार किया है। इस कारण आपसे इस दु:खिनी अबला की प्रार्थना है कि धर्म और न्याय पर पूर्ण विचार कर के मेरी सहायता के हितार्थ निज सेना भेजें ।" इधर अपनी निज सेना के लिये उन्होंने एक विश्वासपात्र मराठी वीर तुकोजीराव को जो कि रणविद्या में चतुर थे, सेनापति बनाया और वे स्वयं वीर वेश धारण कर धनुष बाण, भाला और खड्ग हाथ में ले रण के लिये उद्यत हुई। जिस घड़ी अपने इष्टदेव के मस्तक नवा और उनका ध्यान हृदय में रख बाहर निकल वे प्रयाण करना ही चाहती थी कि यह सुसंवाद सुनाई दिया कि स्वयं भोंसला अपनी बहादुर सेना सहित नर्मदा नदी के तट पर रक्षा के हितार्थ उपस्थित हैं, और पूना से पेशवा सरकार की भी, जो कि मुख्य स्वामी थे सहायता आ पहुँची और एक गुप्त पत्र बाई को दिया गया जिसमें पेशवा सरकार ने लिख भेजा था कि जो कोई तुम्हारे राज्य पर पाप दृष्टि रक्ख अथवा तुम्हारे साथ अनीति का व्यवहार करे तो तुम उसको बिना संदेह उसके दुष्ट कर्म का प्रतिफल देवो । इस पत्र को पढ़ बाई रोमांचित हो गईं और मन ही मन परमामा को कोटिशः धन्यवाद देने लगीं । चारों ओर से सहायता और आश्वासन के वाक्य सुनकर बाई ने रातों रात अपनी सेना के साथ इंदौर से निकल "गडवाखेडी" नामक स्थान पर पड़ाव डाल दिया । यहाँ पहुँचने पर और और