जगहों की सेना बाई के संरक्षणार्थ आ पहुँची। इनके लिये भोजन, व्यय आदि का इस प्रकार से उत्तम प्रबंध बाई ने किया था कि सच को बड़ा आश्चर्य हुआ कि अबला स्त्री में ऐसी आपत्ति के आने पर भी कितना धैर्य और किस प्रकार प्रबंध करने की शक्ति है। इस स्थान पर पहुँच बाई युद्ध की प्रतीक्षा करने लगीं।
यह सब हाल जब गंगाधरराव को विदित हुआ तो इसके आश्चर्य की सीमा न रही। कारण यह है कि जितना कुछ बाई ने युद्ध के संबंध में प्रबंध किया था उसकी सवर इसको स्वप्न में भी नहीं होने पाई थी और अचानक इस प्रकार युद्ध की तैयारी तथा अपनी आशारूपी फसल पर युद्धरूपी बादलों से गोलीरूपी जल की वृष्टि होती हुई देख तुंरत राघोवा दादा को यह कौतुक भरा वृत्तांत सुनाने के निमित्त वह भागा। राघोवा दादा भी अपनी सेना के साथ क्षिप्रा नदी के उस पार आ उपस्थित हो गए थे और युद्ध की घोषणा करने का विचार बाँध रहे थे। शिविर में गंगाधरराव के पहुँँचते ही दादा साहब बड़े उत्साहित हो आनंद से गंगाधरराव को कहने लगे "बस अब क्या विलंब है समस्त इंदौर का राज्य तुन्हारा ही है। विधवा बेचारी अहिल्या की क्या सामर्थ्य है जो हमारा सामना करेगी," परंतु जब गंगाधरराव ने यहाँ का सब वृत्तांत रूँधे हुए कंठ से कह सुनाया तब दादा साहब की आँखें खुल गई और वे नाना प्रकार के संकट और विचार गसित हो गए। निदान अपने आपको सहाल कर वे गंगाधरराव से इस संकट के निवारणार्थ सलाह करने लगे।