इधर ज्योंही अहिल्याबाई का राघोवा दादा के सेना सहित क्षिप्रा के तट पर पड़ाव डालने का हाल विदित हुआ त्योंही बाई ने रातो रात अपनी निज सेना को वीर तुकोजी राव के अधीन कर तुरंत वहाँ रवाना कर दिया । तुकोजीराव भी बाई के चरणों में मस्तक नवा सेना के साथ रवाना होकर सूर्योदय से पूर्व क्षिप्रा के इस पार जा उपस्थित हुए और दूसरे दिन जब दादा साहब की सेना नदी के पार उतरने की चेष्टा करने लगा तब तुकोजी ने दादा साहब से कहला भेजा कि अहिल्याबाई के आज्ञानुसार आपको मैं पूर्व ही सूचना दिए देता हूँ कि आप अपना आगा पीछा पूर्ण रीति से विचार कर नदी के पार होवे । आप की सेना की गति रोकने को मैं यहाँ पूर्ण रीति से तैय्यार हूँ ।
वीर तुकोजी के ऐसे निर्भय शब्दों को सुन दादा साहब का मन कपायमान हो गया, क्योंकि गंगाधरराव ने जब संपूर्ण समाचार बाई की ओर का कह सुनाया था तब जैसा दादा साहब ने बाई को युद्ध करके जीत लेना सहज मान रखा था वैसा न देख उनकी सारी वीरता की उमंगै एकाएक लोप हो गई। निदान दादा साहब ने पछता कर तुकोजी राव से यह कहला भेजा कि हम तो मालीराव की मृत्यु के समाचार को सुनकर बाई साहब को सात्वना देने के निमित्त ही आ रहे हैं । परंतु न जाने किस भय से आप लड़ने के लिये उद्यत हो रहे हैं । इस प्रकार के चतुराई के उत्तर से तुकोजीराव ने पूर्ण निश्चय कर लिया कि ये केवल गंगाधरराव की उत्तेजना मात्र से ही सेना सहित यहाँ आन उपस्थित हुए हैं, परंतु