पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/८३

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होलकर जीवित थे, उस समय वे अपनी सेना के खर्च का वर्ष भर का रुपया एक समय पर ही अलग निकाल रख छोड़ते थे और फिर कभी बाई को इस विभाग में रुपया निज कोष से निकाल कर देने की आवश्यकता नहीं होती थी। परंतु तुकोजीराव का ढंग निराला था। वे जितना जिस समय आवश्यकता होती, वह सब बाई से माँग कर ही व्यय किया करते थे।

सच्चे और स्वामिभक्त सेवकों का यह एक प्रकार को धर्म होता है कि वे द्रव्य संबंधी कार्यों से सर्वदा भयभीत रहा करते हैं। इस कारण वे अपने पास द्रव्य इकट्टा लेकर नही रख छोड़ते, वरन् जिस जिस समय पर जितने द्रव्य की आवश्यकता होती है, अपने मालिक से उतना ही द्रव्य माँग कर कार्य की व्यवस्था कर देते हैं। परंतु मालिक को बारंबार के देने लेने से असुविधा और कष्ट होता है। इस कारण से अहिल्याबाई और तुकोजीराव दोनों के बीच कभी कभी वाद विवाद हो जाता था। परंतु ऐसा होने पर भी बाई का वात्सल्य और तुकोजीराव की श्रद्धा सदा अटल रहा करती थी, उसमें लेश मात्र भी न्यूनता नहीं होने पाती थी। इस विषय में मालकम साहय एक स्थान पर लिखते हैं कि- "अहिल्याबाई ने, अपनी सेना के लिये और उन कार्यों को पूर्ण करने के लिये, जिनको एक अबला स्त्री नहीं कर सकती थीं, तुकोजीराव होलकर ही को चुना था, जो कि इसी जाति को एक सरदार था, परंतु मल्हारराव होलकर का कुटुंबी नहीं था। जब तुकोजीराव पागाव रिमाले पर हुकूमत करते