पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/८७

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कर आप निश्चित हो धर्म करतीं और प्रजा की किस बात में भलाई हो, यह सर्वदा विचारा करती थीं। वे नित्य सूर्योदय के पूर्व शय्या से उठ कर प्रातःकृत्य से निपट पूजन करने बैठतीं और उसी स्थान पर पूजन के अनंतर योग्य और श्रेष्ठ ब्राह्मणों के द्वारा रामायण, महाभारत और अनेक पुरणादि की कथा श्रवण करती थीं। उस समय राजमहलों के द्वार पर सैकड़ों ब्राह्मणों और भिखारियों की दान लेने के उद्देश्य से भीड़ लगी रहती थी। बाई श्रवण से निवृत्त हो कर अपने निज कर कमलों से ब्राह्मणों को दान और भिखारियों को भिक्षा देती थीं; और इसके पश्चात वे निमंत्रित ब्राह्मणों को भोजन कराने के अनंतर स्वयं भोजन करती थीं। उनका भोजन बहुत सामान्य रहता था। उसमें राजसी ठाठ के व्यंजनों की भाँति विशेष आडंबर नहीं रहता था। आहार के पश्चात् वे कुछ काल पर्यंत विश्राम करतीं और फिर उठ कर एक साधारण साड़ी पहन राजसभा में जातीं और सायंकाल तक बड़ी सावधानी से राजकार्य करती थीं। दरबार के समय बाई के निकट पहुँचने के लिये किसी व्यक्ति को रोक टोक नहीं थी, जिस किसी को अपना दुःख निवेदन करना होता वह स्वयं समीप पहुँच कर निवेदन करता था, और बाई भी उसके निवेदन को ध्यानपूर्वक श्रवण करती थीं और पश्चात् यथोचित आज्ञा देती थीं। संध्या होने के कुछ समय पूर्व बाई अपने दरबार को विसर्जित करती थीं और संध्या काल के पश्चात् प्रायः तीन घंटे पुनः भजन पूजन में व्यतीत