पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
आठवाँ अध्याय ।
अहिल्याबाई का राज्य-शासन ।

जिस समय अहिल्याबाई ने सुख और शांति के साथ राज्यशासन का कार्य आरंभ किया था, वह समय वर्तमान समय के महाप्रतापी अँगरेजों का सा शांतिमय न था, वरन् घोर युद्ध, विग्रह, उत्पात और लूट-मार का था । उस समय भारतवर्ष एक ओर से कट्टर लड़ाके मरहठे डाकुओं से और दूसरी ओर से उद्दंड जाट, रुहेले, पिंजारे और अनेक लुटेरों का रंगस्थल हो रहा था । ऐसे भयंकर समय में और ऐसे भयानक प्रदेश में भी बाई ने सुख, शांति और धर्म पर आरूढ़ रह कर नियमपूर्वक राज्य का शासन, किया, यह क्या एक अबला स्त्री के लिये विशेष गौरव का विषय नहीं है ? यह केवल अहिल्याबाई के पुण्य का प्रत्यक्ष उदाहरण था कि वे ही लुटेरे, वे ही लड़ाके, और वे ही उपद्रवी जो संपूर्ण भारत में हलचल मचा रहे थे, धर्म की मूर्ति प्रतापशालिनी अहिल्या बाई के शासित राज्य की ओर आँख उठाकर भी नहीं देख सकते थे, यद्यपि वे सब लुटेरे और डाकू उनके राज्य की सीमा के निकटवर्ती स्थानों में ही रहा करते थे ।

अहिल्याबाई ने तुकोजीराव होलकर को राज्य के कठिन कार्यो का भार सौंप कर बड़ी बुद्धिमानी की थी। युद्ध, राज्य की शांति और धन इकट्ठा करने का काम इनको सौंप