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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/९१

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विचार छोड़ दिया और बाई के उदार व्यवहार से संतुष्ट हो इंदौर की प्रजा मात्र उनको धन्य धन्य कहने लगी ।

इसी प्रकार अहिल्याबाई राज्य के दो लक्ष्मीपुत्र स्वर्गवासी हुए और उनके घरों में भी विधवाओं के अतिरिक्त कोई उत्तराधिकारी नहीं था, और न इन विधवा ने कोई दत्तक पुत्र लेना स्वीकार किया था। वरन् अपनी संपूर्ण संपत्ति अहिल्याबाई को ही देना निश्चय किया । परंतु बाई को ज्ञात होने पर उन्होंने इन दोनों विधवाओं को अपने समीप बुलवा कर यह उपदेश दिया कि तुम दोनों अपनी अपनी संपत्ति ऐसे उचित कार्य में लगाओ जिससे तुम्हारा यह लोक और परलोक दोनों सुधरें । अहिल्याबाई के इन उपदेश को शिरोधार्य करके उन दोनों विधवाओं ने अपनी अपनी संपत्ति से दान, धर्म, देवालय, कूआँ, बावड़ी आदि बनवाई और अनेक प्रकार के व्रत पूजन कर ब्राह्मणों को दक्षिणा आदि देकर वे यश की भागी बनीं ।

उस समय आस पास के ऐसे अनेक राजा महाराज थे जिनकी उद्दंडता के कारण प्रजा अपना धन छिपा छिपा कर रखती थी । क्योंकि अमुक के पास इतना द्रव्य है, यह बात राजदरबार में प्रकट हो जाती तो तुरंत वह धन प्रजा से छीन कर राजा उसको नष्ट भ्रष्ट कर दिया करते थे । इस समय पालकी पर चढ़कर निकलना, उत्तम उत्तम पाँच पाँच सात सात मंजिल के मकान बनवाना साधारण प्रजा का कार्य नहीं था । इस प्रकार के सुख और वैभव से वही भाग्यशाली मनुष्य रह सकता था जो कि राजा का पूर्ण कृपापात्र