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पृष्ठ:आँधी.djvu/११५

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आँँधी


उठा कर कहा -मैं इसे मान लेता हूँ कि आपक पास बड़ी अच्छी युक्तियाँ हैं और उनके द्वारा मेरी वर्तमान दशा का कारण आप मुझे ही प्रमाणित कर सकते हैं। कितु वृक्ष के नीचे पुआल से ढंँकी हुई मेरी झोपड़ी को और उसमें पड़े हुए अनाहार सर्दी और रोगों से जीर्ण मुझ अभागे को मेरा ही भ्रम बताकर आप किसी बड़े भारी सत्य का आविष्कार कर रहे हैं तो कीजिए । जाइए मुझे क्षमा कीजिए ।

देवनिवास कुछ बोलने ही वाला था कि नीरा ने दृढ़ता से कहा -आप लोग क्यों बाबा को तंग कर रहे हैं ? अब उन्हें सोने दीजिए।

निवास ने देखा कि नीरा के मुख पर आत्मनिर्भरता और संतोष की गम्भीर शांति है। स्त्रियों का हृदय अभिलाषाओं का संसार के सुखों का क्रीडास्थल है किंतु नीरा का हदय नीरा का मस्तिष्क इस किशोर अवस्था में ही कितना उदासीन और शांत है। वह मन ही मन नीरा के सामने प्रणत हुआ।

दोना मित्र उस झोपड़ी से निकले । रात अधिक बीत चली थी। व कलकत्ता महानगरी की घनी बस्ती में धीरे-धीरे साइकिल चलाते हुए घुसे । दोनों का हृदय भारी था। वे चुप थे ।

देवनिवास का मित्र कच्चा नागरिक नहीं था । उसको अपने आकड़ो का और उनके उपयोग पर पूरा विश्वास था । वह सुख और दुख दरिद्रता और विभव कटुता और मधुरता की परीक्षा करता । जो उसके काम के होते उन्हें सम्भाल लेता फिर अपने मार्ग पर चल देता। सार्वजनिक जीवन का ढोंग रचने में वह पूरा खिलाड़ी था। देवनिवास के आतिथ्य का उपभोग करके अपने लिए कुछ मसाला जुटा कर वह चला गया ।

किन्तु निवास की आँखों में उस रात्रि में बूढे की झोपड़ी का दृश्य अपनी छाया ढालता ही रहा । एक स ताह बीतने पर वह फिर उसी ओर चला।