किसी कर्म को करने के पहले उसमे सुख की ही खोज करना क्या अत्यत आवश्यक है।सुख तो धर्माचरण से मिलता है।यथासंसार तो दुखमय है ही! ससार के कर्मों को धार्मिकता के साथ करने में सुख की ही सभावना है।
कितु ब्याह जैसे कर्म से तो सीधा सीधा स्त्री से सम्बध है । स्त्री!कितनी विचित्र पहेली है। इसे जानना सहज नहीं। बिना जाने ही उस से अपना सम्बन्ध जोड़ लेना कितनी बड़ी भूल है ब्रह्मचारीजी।-मैंने हँस कर कहा।
भाई तुम बड़े चतुर हो। खूब सोच-समझ कर परख कर तब सम्बध जोड़ना चाहते हो न कि तु मेरी समझ मे सम्बध हुए बिनापरखने का दूसरा उपाय नहीं।प्रज्ञासारथि ने गभीरता से कहा।मैं चुप हो कर सोचने लगा।अभी अभी जो मैंने एक काण्ड का बीजारोपण किया है। वह क्या लैला के स्वभाव से परिचित होकर|मैं अपनी मूर्खता पर मन-ही मन तिलमिला उठा।मैंने कल्पना से देखा लैला प्रतिहिंसा भरी एक भयानक राक्षसी है यदि वह अपने जातिस्वभाव के अनुसार रामेश्वर के साथ बदला लेने की प्रतिज्ञा कर बैठे तब क्या होगा?
प्रज्ञासारथि ने फिर कहा-मेरा जाना तो निश्चित ताम्रपर्णा की तरंग मालाएँ मुझे बुला रही है।मेरी एक प्रार्थना है। आप कभी कभी आकर इसका निरीक्षण कर लिया कीजिए।
मुझे एक बहाना मिला मैंने कहा-मैंने बैठे बिठाये एक झझट बुला ली है।मैं देखता हूँ कि कुछ दिनों तक तो मुझे उसमें फँसना ही पड़ेगा।
प्रज्ञासारथि ने पूछा-वह क्या!
मैंने लैला का पत्र पढने और उसके बाद का सब वत्तात कह सुनाया।प्रज्ञासारथि चुप रहे फिर उहोंने कहा-आपने इस काम को