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पृष्ठ:आँधी.djvu/२२

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आँँधी


खूब सोच समझ कर करने की आवश्यकता पर तो ध्यान न दिया होगा क्योंकि इसका फल दूसरे को भोगने की सम्भावना है न।

मुझे प्रकासारथि का यह व्यग अच्छा न लगा।मैंने कहा-सम्भव है कि मुझे भी कुछ भोगना पड़े।

भाई मैं तो देखता हूँ ससार में बहुत से ऐसे काम मनुष्य को करने पड़ते हैं जिन्हें वे स्वप्न मे भी नहीं सोचता। अकस्मात् वे प्रसंगसामने आकर गुर्राने लगते हैं जिनसे भाग कर जान बचाना ही उसका अभीष्ट होता है।मैं भी इसी तरह याह करने के लिए सिहल जा रहा हूँ।

अधकार को भेद कर शरद का चंद्रमा नारियल और खजूर के वृक्षों पर दिखाई देने लगा था।चदा का ताल लहरियों में प्रसन्न था।मैं क्षण भर के लिए प्रकृति की उस सुंंदर चित्रपटी को तमय होकर देखने लगा।

कमुआ ने जब प्रज्ञासारथि को भोजन करने की सूचना दी मुझे स्मरण हुआ कि मुझे उस पार जाना है।मैंने दूसरे दिन आने को कह कर प्रज्ञासारथि से छुट्टी मागी।

डोंगी पर बैठकर मैं धीरे धीरे डाड़ चलाने लगा।

मैं अनमना-सा डाड़ चलाता हुआ कभी चद्रमा को और कभी चदा ताल को देखता।नाव सरल आन्दोलनों मे तिर रही थी।बार बार सिंहाली प्रज्ञासारथि की बात सोचता जाता था।मैंने घूमकर देखा तो कुंज से घिरा हुआ पाठशाला का भवन चदा के शुभ्रजल में प्रति विम्बित हो रहा था!चदा का वह तट समुद्र उपकूल का एक खंड चित्र था।मन-ही-मन सोचने लगा-मैं करता ही क्या हूँ, यदि मैं पाठशाला का ही निरीक्षण करूँ तो हानि क्या? मन भी लगेगा और समय भी कटेगा।अब मैं बहुत दूर चला आया था।सामने मुचकुद वृक्ष की नील प्राकृति दिखलाई पड़ी।मुझे लैला का फिर स्मरण