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आँँधी

आ गया।कितनी सरल स्वतत्र और साहसिकता से भरी हुई रमणी है। शसुरमीली आंखों में कितना नशा है और अपने मादक उपकरणों से भी रामेश्वर को अपनी ओर आकर्षित करने में वह असमर्थ है।रामेश्वर पर मुझे क्रोध श्राया और लैला को फिर अपने विचारों सेउलझते देख कर मैं झुमला उठा।अब किनारा समीप हो चला था।मैं मुचकुन्द की ओर से नाव घुमाने को था कि मुझे उस प्रशात जल म दो शिर तैरते हुए दिखाई पड़े।शरद काल की शीतल रजनी में उनतैरनेवालों पर मुझ श्राश्चर्य हुआ।मैंने डाड़ा चलाना बद कर दिया।दोनों तैरनेवाले डोंगी के पास आ चले थे।मैंने चद्रिका के आलोक म पहचान लिया वह लैला का सुदर मुख था।कुमुदिनी की तरह प्रफुल्ल चादनी में हँसता हुआ लैला का मुख!मैंने पुकारा–लैला!वह बोलने ही को थी कि उसके साथवाला मुख गुर्रा उठा।मैंने समझा कि उसका साथी गुल होगा किन्तु लैला ने कहा-चुप बाबूजी हैं।अब मैंने पहचाना कि वह एक भयानक ताजी कुत्ता है जो लैला के साथ तैर रहा था।लैला ने कहा-बाबूजी आप कहा –मेरी डोंगी के एक ओर'लैला का हाथ था और दूसरी ओर कुो के दोनों अगले पंजे।मैंने कहा–यों ही घूमने आया था और तुम रात को तैरती हो?लैला!

दिनभर काम करने के बाद अब तो छुट्टी मिली है बदन ठंढा कररही हूँ।-लेखा ने कहा।

वह एक अद्भुत दृश्य था। इतने दिनों तक मैं जीवन के अकेलेदिनों को काट चुका हूँ।अनेक अवसर विचित्र घटनाओं से पूर्ण और मनोरंजक मिले हैं कि ऐसा दृश्य तो मैंने कभी न देखा।मैंने पूछा-आज की रात तो बहुत ठंढी है लैला।

उसने कहा-नहीं बड़ी गर्म।

दोनों ने अपनी रुकावट हटा ली।डोंगी चलने को स्वतंत्र थी।लैला और उसका साथी दोनों तैरने लगे। मैं फिर अपने बँगले की ओर