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पृष्ठ:आँधी.djvu/३०

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आँँधी

एक दिन मैं बाजार से अकेला लौट रहा था। बँगले के पास मैं पहुचा ही था कि लैला मुझे दिखाई पड़ी। वह अपने घोड़े पर सवार थी। मैं क्षण भर तक विचारता रहा कि क्या करूँ।तब तक घोड़े से उतर कर वह मेरे पास चली आई।मैं खड़ा हो गया था। उसनेपूछा-बाबूजी आप कहीं चले गये थे?

हाँ।

अब इस बँगल में आप नहीं रहते?

मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूँ लैला। —मैंने घबरा कर उस से कहा-

क्या बाबूजी?

वह चिट्ठी।

है तो मेरे ही पास क्यों ?

मैंने उसमें कुछ झूठ कहा था।

झूठ!-लैला की आँखों से बिजली निकलने लगी थी।

हाँ लैला!उसमें रामेश्व ने लिखा था कि मैं तुमको नहीं चाहता मुझे बाल बचे हैं।

ए!तुम झूठे। दगाबाज!-कहती हुई लैला अपनी कुरी कीओर देखती हुई दात पीसने लगी।

मैंने कहा-लैला तुम मेरा कसूर ।

तुम मेर दिल से दिलगी करते थे।कितने रज की बात है।-वहकुछ न कह सकी। वहीं बैठ कर रोने लगी। मैंने देखा कि यह बड़ी आफत है।कोई मुझे इस तरह यहाँ देखेगा तो क्या कहेगा।मैं तुरन्त वहा से चल देना चाहता था किन्तु लैला ने आंसू भरी आंखों से मेरी ओर देखते हुए कहा-तुमने मेर लिए दुनिया में एक बड़ी अच्छी बात