सुनाई थी।यह मेरी हसी थी।इसे जान कर आज मुझे इतना गुस्साआता है कि मैं तुमको मार डाल या श्राप ही मर जाऊँ।-लैला दात पीस रही थी। मैं काप उठा-अपने प्राणों के भय से नहीं किन्तु लैला के साथ अदृष्ट के खिलवाड़ पर और अपनी मूखता पर!मैंने प्रार्थना के ढंग से कहा-लैला मैंने तुम्हारे मन को ठेस लगा दी है इसका मुझे बड़ा दुख है।अब तुम उसको भूल जाओ।
तुम भूल सकते हो,मैं नहीं!मैं खून करूँगी!उसकी आँखों से ज्वाला निकल रही थी।
किसका लैला!मेरा?
ओह-नहीं तुम्हारा नहीं तुमने एक दिन मुझे सबसे बड़ा आराम दिया है।हो वह झठा।तुमने अच्छा नहीं किया था तो भी मैं तुमको अपना दोस्त समझती हूँ।
तब किसका खून करोगी?
उसने गहरी सांस ले कर कहा-अपना या किसी फिर चुप हो गई।मैंने कहा-तुम ऐसा न करोगी लैला!मेरा और कुछ कहनेका साहस नहीं होता था।उसी ने फिर पूछा-वह जो तेज हवा चलती है जिसमें बिजली चमकती है बरफ गिरती है जो बड़े बड़े पेड़ों कोतोड़ डालती है।हम लोगों के घरों को उड़ा ले जाती है।
आधी।मैंने बीच ही मे कहा।
हा वही मेर यहा चल रही है।-कह कर लैला ने अपनी छाती पर हाथ रख दिया।
लैला!-मैंने अधीर हो कर कहा।
मैं उसको एक बार देखना चाहती हूँ।उसने भी व्याकुलता से मेरी ओर देखते हुए कहा।