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पृष्ठ:आँधी.djvu/३५

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आँँधी
 


पूछा-भाईजी लडडू कैसे हैं यह तो आपने बताया नहीं धीरे से खा गये।

जो वस्तु अच्छी होती है वही तो गले मे धीर से उतार ली जाती है।नहीं तो कड़वी वस्तु के लिए थू थू न करना पड़ता।मैं कही रहा था कि लैला ने रामेश्वर से कहा-ठीक तो!मैंने सुन लिया ।अब आप उसको फाड़ डालिए।तब आपको चारयारी दिखाऊ।

रामेश्वर सचमुच पत्र फाड़ने लगा।चिंंदी चिंंदी उस कागज के टुकड़े की उड़ गई और लेला ने एक छिपी हुई गहरी साँस ली कि किंतु मेरे कानों ने उसे सुन ही लिया।वह तो एक भयानक आधी से कम न थी। लैला ने सचमुच एक सोने की चारयारी निकाली। उसके साथ एक सुन्दर मगे की माला। रामेश्वर ने चारयारी लेकर देखा।उसने मालती से पचास के नोट देने के लिए कहा।मालती अपने पति के व्यवसाय को जानती थी उसने तुरत नोट दे दिये ।रामेश्वर ने जब नोट लैला की ओर बढाये तभी कमलो सामने आकर खड़ी हो गई-बा लाल । रामेश्वर ने पूछा क्या है रे कमलो?

पुतली सी सुदर पालिका ने रामेश्वर के गाला को अपने छोटे से हाथों से पकड़ कर कहा-लाला लाल

लैला ने नोट ले लिये थे। उसने पूछा-बाबूजी! मूँगे की माला न लीजिएगा? नहीं।

लेला ने माला उठाकर कमलो को पहना दी। रामेश्वर नहीं नहीं कर ही रहा था किन्तु उसने सुना नहीं! कमलो ने अपनी माँँ को देख कर कहा-मां लाल वह हँस पड़ी और कुछ नोट रामेश्वर को देते हुए बोली-तो ले न लो इसका भी दाम दे दो।

लैला ने तीव्र दृष्टि से मालती को देखा मैं तो सहम गया था। मालती हँस पड़ी। उसने कहा-क्या दाम न लोगी?