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पृष्ठ:आँधी.djvu/४५

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आँँधी
 


सरकार । बूढों से सुने हुए वे नवाबी के सोने से दिन अमीरों की रग रेलिया दुखिया की दर्द भरी आहें रगमहलों म घुल घुल कर मरने वाली वेगम अपने आप सिर म चक्कर काटती रहती हैं । मैं उनकी पीड़ा से रोने लगता हूँ | अमीर कंगाल हो जाते हैं । बड़े बडो के घमंड चर हो कर धूल म मिल जाते हैं | तब भी दुनिया बड़ी पागल है। में उसके पागलपन को भुलाने के लिए शराब पीने लगता हूँ- सरकार ।नहीं तो यह बुरी बला कौन अपने गले लगाता।

ठाकुर साहब ऊघने लगे थे । अगीठी म कोयला दहक रहा था। शराबी सरदी से ठिठुरा जा रहा था। वह हाथ सेंकने लगा। सहसा नींद से चौंक कर ठाकुर साहब ने कहा- अच्छा जाओ मुझे नींद लग रही है। वह देखो एक रुपया पड़ा है उठा लो। लल्लू को भेजते जाओ।

शराबी रुपया उठा कर धीरे से खिसका । लल्लू था ठाकुर साहब का जमादार। उस खोजते हुए जब वह फाटक पर की बगलवाली कोठरी के पास पहुँचा तो उसे सुकुमार कंठ से सिसकने का श सुनाई पड़ा। वह खड़ा होकर सुनने लगा।

तो सूअर रोता क्या हैं ? कुवर साहब ने दो ही लातें लगाई हैं। कुछ गोली तो नहा मार दी ? -कर्कश स्वर से लल्लू बोल रहा था कित उत्तर म सिसकियों के साथ एकाध हिचकी ही सुनाई पड़ जाती थी। अब और भी कठोरता से लल्लू ने का-मधुश्रा | जा सो रह। नखरा न कर नहीं तो उठूँगा तो खाल उधेड़ दूँगा । समझा न ?

शराबी चुपचाप सुन रहा था। बालक की सिसकी और बढने लगी। फिर उसे सुनाई पड़ा- ले अब भागता है कि नहीं ? क्यों मार खाने पर तुला है ?

भयभीत बालक बाहर चला आ रहा था । शराबी ने उसके छोटे से सुपर गोरे मुँह को देखा । आँसू की बूंदे ढलक रही थीं। बड़े दुलारे से उसका मुँह पोंछते हुए उसे लेकर वह फाटक के बाहर से चला