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आँँधी
 


एक कंगाल था । प्रतिदिन की मर्यादा वृद्धि राजकीय विश्वास और उसम सुख की अनुभूति ने मेरे जीवन को पहेली बनाकर जाने दो । मैंने सुतान के दरबार से जितना सीखा है वही मेरे लिए बहुत है। एक बनावटी गम्भीरता! छल पूर्ण विनय ! श्रोह कितना भीषण है यह विचार !मैं धीरे धीर इतना बन गया हूँ कि मेरी सहृदयता घूघट उलटने नहीं पाती लोगों को मेरी छाती में हृदय होने का स देह हो चला है। फिर मैं तुमसे अपनी सहृदयता क्यों प्रकट करू १ तब भी आज तुमने मेरे स्वभाव की धारा का बाँध तोड़ दिया है । आज मैं ।

बस राजा साहब और कुछ न कहिए । मैं जाता हूँ। मैं समझ गया कि ठहरो मुझे अधिक अवकाश नहीं है। कल यहा से कुछ विद्रोही गुलाम अहमद निया तगीन के पास लाहौर जानेवाले हैं उन्हीं के साथ तुम चले जाओ । यह लो-कहते हुए सु तान के विश्वासी राजा तिलक ने बलराज के हाथों में थैली रख दी। अलराज वहाँ से चुपचाप चल पड़ा।

तिलक सु तान महमूद का अय त विश्वासपान हि कर्मचारी या। अपने बुद्धि बल से कहर यवनों के बीच म अपनी प्रतिष्ठा दृढ रखने के कारण सुल्तान मसऊद के शासन काल म भी वह उपेक्षा का पात्र नहीं था। फिर भी वह अपने को हिन्दू ही समझता था चाहे अन्य लोग उसे कुछ समझते रहे हों। बलराज की बातें वह सुन चुका था। आज उसकी मनोवृत्तियों म भयानक हलचल थी । सहसा उसने पुकारा-फीरोजा।

झाड़ियों से निकल कर फीरोजा ने उसके सामने सिर झुका दिया तिलक ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कोमल स्वर में पूछा-फीरोजा, तुम अहमद के पास हिदुस्तान जाना चाहती हो ।