दासी
फीरोजाबाद के हृदय में कम्पन होने लगा । वह कुछ न बोली । तिलक ने कहा - डरो मत साफ साफ कहो ।
क्या अहमद ने आपके पास दीनारें भेज दीं-कहकर पीरोजा ने अपनी उत्कएठा भरी आंख उठाई । तिलक ने हँसकर कहा-सो तो उसने नहीं भेजी तब भी तुम जाना चाहती हो तो मुझसे कहो।
मैं क्या कह सकती हूँ। जैसी मेरी । कहते कहते उसकी आँखों में आंसू छलछला उठे । तिलक ने कहा-पीरोजा तुम जा सकती हो । कुछ सोने के टुकड़ों के लिए मैं तुम्हारा हृदय नहीं कुछ लेना चाहता।
सच आश्चर्य भरी कृतज्ञता उसकी वाणी में थी।
सच फीरोजा ! अहमद मेरा मित्र है । और भी एक काम के लिए तुमको भेज रहा हूँ। उसे जाकर समझायो कि वह अपनी सेना लेकर पंजाब के बाहर इधर उधर हिंदुस्तान में लूट-मार न किया कर। मैं कुछ ही दिनों में सुतान से कह कर खजाने और मालगुजारी का अधिकार भी उसी को दिला दूंगा | थोड़ा समझ कर धीरे-धीरे काम करने से सब हो जायेगा । समझा न दरबार में इस पर बड़ी गर्मागर्मी है कि अहमद, की नियत खराब है। कहीं ऐसा न हो कि मुझी को सुल्तान इस काम के लिए भजे।
फीरोजाबाद मैं हिंदुस्तान नहीं जाना चाहता । मेरी एक छोटी बहन थी वह कहा है ? क्या दुख उसने पाया ? मेरी लिए जीती है इन कई बरसों से मैंने इसे जानने की चेष्टा भी नहीं की और भी मैं हिदू हूँ फीरोजा ! आज तक अपनी आकांक्षा में भूला हुआ अपने आराम में मस्त अपनी उन्नति में विस्मृत, गजनी में बैठा हुआ हिंदुस्तान को अपनी जन्मभूमि को और उसके दुख दर्द को भूल गया हूँ। सुल्तान महमूद के लूटों की गिनती करना उस रक्त रंजित धन की तालिका बनाना हिंदुस्तान के ही शोषण के लिए सुस्ताने को नयी नयी तरकीबें