पृष्ठ:आँधी.djvu/७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६५
दासी

भाई!-इरावती आगे कुछ न क सकी उसका गला भर आया था। उसने तिलक क पैर पकड़ लिये।

×
×
×

बलराज जाटों का सर्दार है इरावती रानी। चनाव का वह प्रात इरावती की करुणा से हरा भरा हो रहा है कि तु फीरोजा की प्रसन्नता की वहीं समाधि बन गई-और वहीं वह झाड़ देती फूल चढाती और दीप जलाती रही। उस समाधि की वह आजीवन दासी बनी रही।